और उम्मीद क्या कीजिए
हो सके तो वफ़ा कीजिए
हाथ आए न जब काफ़िया
दिल से इस्लाह लिया कीजिए
कब तलक दिल के दुखड़े सुनें
कुछ नया भी कहा कीजिए
दिन-ब-दिन दिल-ब-दिल दर-ब-दर
अपने घर भी रहा कीजिए
दिल में आ ही गए हैं तो ख़ैर
अब यहीं बोरिया कीजिए
ऐ अदम आज तो बख्श दे
वो हों मेहमाँ तो क्या कीजिए
हम चले उनकी आग़ोश में
मोमिनों रास्ता कीजिए !
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
कल 03/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
दिल में आ ही गए हैं तो ख़ैर
जवाब देंहटाएंअब यहीं बोरिया कीजिए
ऐ अदम आज तो बख्श दे
वो हों मेहमाँ तो क्या कीजिए
..
बहुत खूब रही!
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
Bahut sunder prastuti.. !!!
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