ख़ुश्बुए-दिल जहां नहीं होती
कोई बरकत वहां नहीं होती
हौसले साथ- साथ बढ़ते हैं
सिर्फ़ हसरत जवां नहीं होती
ज़र्फ़ है तो निगाह बोलेगी
ख़ामुशी बेज़ुबां नहीं होती
ज़िंदगी दर -ब- दर भटकती है
और फिर भी रवां नहीं होती
ज़ीस्त जब जब फ़रेब करती है
मौत भी मेह्रबां नहीं होती
फ़र्ज़ है दिल संभाल कर रखना
बेक़रारी कहां नहीं होती
रूह से जो दुआ निकलती है
वो: कभी रायग़ां नहीं होती !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुश्बुए-दिल : मन की सुगंध; बरकत : अभिवृद्धि, श्री वृद्धि; हौसले :साहस,उत्साह; हसरत : अभिलाषा; जवां: युवा; ज़र्फ़ : गंभीरता; निगाह :दृष्टि; ख़ामुशी :मौन; दर ब दर:द्वार द्वार; रविं:सुचारु, प्रवाहमान;ज़ीस्त :जीवन; फ़रेब: कपट; मेह्रबां : दयावान; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; बेक़रारी :व्यग्रता; रूह: आत्मा, अंतर्मन; दुआ: प्रार्थना; रायग़ां :व्यर्थ ।
कोई बरकत वहां नहीं होती
हौसले साथ- साथ बढ़ते हैं
सिर्फ़ हसरत जवां नहीं होती
ज़र्फ़ है तो निगाह बोलेगी
ख़ामुशी बेज़ुबां नहीं होती
ज़िंदगी दर -ब- दर भटकती है
और फिर भी रवां नहीं होती
ज़ीस्त जब जब फ़रेब करती है
मौत भी मेह्रबां नहीं होती
फ़र्ज़ है दिल संभाल कर रखना
बेक़रारी कहां नहीं होती
रूह से जो दुआ निकलती है
वो: कभी रायग़ां नहीं होती !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुश्बुए-दिल : मन की सुगंध; बरकत : अभिवृद्धि, श्री वृद्धि; हौसले :साहस,उत्साह; हसरत : अभिलाषा; जवां: युवा; ज़र्फ़ : गंभीरता; निगाह :दृष्टि; ख़ामुशी :मौन; दर ब दर:द्वार द्वार; रविं:सुचारु, प्रवाहमान;ज़ीस्त :जीवन; फ़रेब: कपट; मेह्रबां : दयावान; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; बेक़रारी :व्यग्रता; रूह: आत्मा, अंतर्मन; दुआ: प्रार्थना; रायग़ां :व्यर्थ ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-03-2017) को "फूल और व्यक्ति" (चर्चा अंक-2906) (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'