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रविवार, 4 फ़रवरी 2018

सोचते नहीं बाग़ी ...

आजकल  ज़माने  में    ऐतबार  किसका  है
बेवफ़ा  हवाओं  पर  इख़्तियार  किसका  है

क्यूं  बताएं  दुनिया  को  राज़  गुनगुनाने  का
लोग  जान  ही  लेंगे  ये;  ख़ुमार  किसका  है

इश्क़  ही  तरीक़ा  है  रंजो-ग़म   भुलाने  का
सामने  खड़े  हैं  हम     इंतज़ार  किसका  है

शुक्रिया  हमें  अपनी   बज़्म  में  बिठाने  का
आपने  दिया  है  जो  वो:  मयार  किसका  है

वक़्त  तोड़  डालेगा  हर  तिलिस्म  साहिर  का
ये:  हसीन  लम्हा  भी    राज़दार  किसका  है

इंक़िलाब  के  आशिक़    मौत  से  नहीं  डरते
सोचते  नहीं  बाग़ी       इक़्तिदार  किसका  है

ख़ाक  में  पड़े  हैं  सब  शाह  भी  भिखारी  भी
कौन  जानता  है  अब  ये;  मज़ार  किसका  है !

                                                                                             (2017)

                                                                                         -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ऐतबार: विश्वास; बेवफ़ा: आस्थाहीन; इख़्तियार: अधिकार; राज़: रहस्य; ख़ुमार: तंद्रा, मद; रंजो-ग़म: खेद एवं शोक; बज़्म: सभा; मयार: स्थान; तिलिस्म: मायाजाल, रहस्य; साहिर: मायावी; हसीन: सुंदर; लम्हा: क्षण; राज़दार: रहस्य छुपाने वाला; इन्क़िलाब: क्रांति; आशिक़: उत्कट प्रेमी; बाग़ी: विद्रोही; इक़्तिदार: शासन, राज, सत्ता; ख़ाक: धूल; मज़ार: समाधि।  

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