आपको शौक़ है सताने का
तो हमें मर्ज़ है निभाने का
सीख लें नौजवां हुनर हमसे
रूठती उम्र को मनाने का
इश्क़ भी क्या हसीं तरीक़ा है
दुश्मनों को क़रीब लाने का
शायरी सिर्फ़ एक ज़रिया है
ज़ीस्त के रंजो-ग़म भुलाने का
हाथ हमने जलाए दानिश्ता
था जहां फ़र्ज़ घर बचाने का
शाह की फ़ौज शाह के गुंडे
काम है बस्तियां जलाने का
आ गया वक़्त ताजदारों को
खैंच कर तख़्त से गिराने का !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ज़: रोग; हुनर: कौशल; इश्क़: उत्कट प्रेम; हसीं: सुंदर, मोहक; ज़ीस्त: जीवन; रंजो-ग़म: दुःख-दर्द; दानिश्ता: जान-बूझ कर; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; फ़ौज: सेना; ताजदारों: सत्ताधारियों; तख़्त: आसन।
तो हमें मर्ज़ है निभाने का
सीख लें नौजवां हुनर हमसे
रूठती उम्र को मनाने का
इश्क़ भी क्या हसीं तरीक़ा है
दुश्मनों को क़रीब लाने का
शायरी सिर्फ़ एक ज़रिया है
ज़ीस्त के रंजो-ग़म भुलाने का
हाथ हमने जलाए दानिश्ता
था जहां फ़र्ज़ घर बचाने का
शाह की फ़ौज शाह के गुंडे
काम है बस्तियां जलाने का
आ गया वक़्त ताजदारों को
खैंच कर तख़्त से गिराने का !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ज़: रोग; हुनर: कौशल; इश्क़: उत्कट प्रेम; हसीं: सुंदर, मोहक; ज़ीस्त: जीवन; रंजो-ग़म: दुःख-दर्द; दानिश्ता: जान-बूझ कर; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; फ़ौज: सेना; ताजदारों: सत्ताधारियों; तख़्त: आसन।
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