नई आरज़ू की शुआएं नई
गुलों को मिली हैं हवाएं नई
अभी दोस्तों को बुरा मत कहो
अभी आ रही हैं दुआएं नई
न मुजरिम रहे हम न मुल्ज़िम हुए
लगाते रहे वो: दफ़ाएं नई
इधर लोग बेज़ार हैं आपसे
कहीं और रखिए अदाएं नई
तजुर्बाते-जम्हूर का शुक्रिया
नहीं चाहिए अब वफ़ाएं नई
रग़ों में सिमटना मुनासिब नहीं
लहू चाहता है ख़ताएं नई
ख़ुदा की गली से निकल आए हम
कि जी चाहता है ख़लाएं नई !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आरज़ू: अभिलाषा; शुआएं; किरणें; गुलों: फूलों; दुआएं: शुभ कामनाएं; मुजरिम: आरोपी; मुल्ज़िम: अपराधी; दफ़ाएं: धाराएं; बेज़ार: तंग, परेशान; अदाएं: -भंगिमाएं; तजुर्बाते-जम्हूर: लोकतंत्र के अनुभव; वफ़ाएं: निष्ठाएं; रग़ों: शिराओं; मुनासिब: उचित; लहू: रक्त; ख़ताएं: अपराध, दोष, उपद्रव; ख़लाएं: एकांत ।
गुलों को मिली हैं हवाएं नई
अभी दोस्तों को बुरा मत कहो
अभी आ रही हैं दुआएं नई
न मुजरिम रहे हम न मुल्ज़िम हुए
लगाते रहे वो: दफ़ाएं नई
इधर लोग बेज़ार हैं आपसे
कहीं और रखिए अदाएं नई
तजुर्बाते-जम्हूर का शुक्रिया
नहीं चाहिए अब वफ़ाएं नई
रग़ों में सिमटना मुनासिब नहीं
लहू चाहता है ख़ताएं नई
ख़ुदा की गली से निकल आए हम
कि जी चाहता है ख़लाएं नई !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आरज़ू: अभिलाषा; शुआएं; किरणें; गुलों: फूलों; दुआएं: शुभ कामनाएं; मुजरिम: आरोपी; मुल्ज़िम: अपराधी; दफ़ाएं: धाराएं; बेज़ार: तंग, परेशान; अदाएं: -भंगिमाएं; तजुर्बाते-जम्हूर: लोकतंत्र के अनुभव; वफ़ाएं: निष्ठाएं; रग़ों: शिराओं; मुनासिब: उचित; लहू: रक्त; ख़ताएं: अपराध, दोष, उपद्रव; ख़लाएं: एकांत ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें