बेख़ुदी गो बहुत ज़रूरी है
ज़र्फ़ भी तो बहुत ज़रूरी है
दोस्तों को दुआ न दे लेकिन
दुश्मनों को बहुत ज़रूरी है
जल न जाए फ़सल उमीदों की
ग़म नए बो बहुत ज़रूरी है
लोग इस्लाह तो करेंगे ही
वो करें जो बहुत ज़रूरी है
क्यूं रहे इज़्तिराब सीने में
दाग़े-दिल धो बहुत ज़रूरी है
सर्द ख़ूं संगदिल ज़माने में
तान कर सो बहुत ज़रूरी है
मर गया है ज़मीर मुंसिफ़ का
टूट कर रो बहुत ज़रूरी है !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : बेख़ुदी : आत्म-विस्मरण; गो : यद्यपि; ज़र्फ़ : गंभीरता, गहनता; दुआ : शुभकामना; उमीदों : आशाओं; ग़म : दु:ख; इस्लाह : मार्गदर्शन, सुझाव देना; इज़्तिराब : विकलता; दाग़े-दिल : मन के कलंक, लांछन; सर्द : ऊष्मा-विहीन; ख़ूं :रक्त; संगदिल: पाषाण-ह्रदय; ज़मीर :अंतरात्मा, विवेक;मुंसिफ़ : न्यायाधीश।
ज़र्फ़ भी तो बहुत ज़रूरी है
दोस्तों को दुआ न दे लेकिन
दुश्मनों को बहुत ज़रूरी है
जल न जाए फ़सल उमीदों की
ग़म नए बो बहुत ज़रूरी है
लोग इस्लाह तो करेंगे ही
वो करें जो बहुत ज़रूरी है
क्यूं रहे इज़्तिराब सीने में
दाग़े-दिल धो बहुत ज़रूरी है
सर्द ख़ूं संगदिल ज़माने में
तान कर सो बहुत ज़रूरी है
मर गया है ज़मीर मुंसिफ़ का
टूट कर रो बहुत ज़रूरी है !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : बेख़ुदी : आत्म-विस्मरण; गो : यद्यपि; ज़र्फ़ : गंभीरता, गहनता; दुआ : शुभकामना; उमीदों : आशाओं; ग़म : दु:ख; इस्लाह : मार्गदर्शन, सुझाव देना; इज़्तिराब : विकलता; दाग़े-दिल : मन के कलंक, लांछन; सर्द : ऊष्मा-विहीन; ख़ूं :रक्त; संगदिल: पाषाण-ह्रदय; ज़मीर :अंतरात्मा, विवेक;मुंसिफ़ : न्यायाधीश।
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