कम अज़ कम क़त्ल तो कीजे ख़ुशी से
न होगा काम ये मुर्दादिली से
बवंडर ही उठा देगा किसी दिन
लगाना आपका दिल हर किसी से
निभाना हो ज़रूरी तो निभाएं
न थामें हाथ लेकिन बेबसी से
न हो मंज़ूर जिसको साथ ग़म का
निकल जाए हमारी ज़िंदगी से
ख़राबी ख़ाक समझेंगे 'ख़ुदा' की
जिन्हें फ़ुर्सत नहीं है बंदगी से
बहुत देखे सिकंदर शाह हमने
गए तो हाथ ख़ाली थे ख़ुदी से
तिजारत क्या हमें रुस्वा करेगी
हमारी लौ लगी है मुफ़लिसी से !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
न होगा काम ये मुर्दादिली से
बवंडर ही उठा देगा किसी दिन
लगाना आपका दिल हर किसी से
निभाना हो ज़रूरी तो निभाएं
न थामें हाथ लेकिन बेबसी से
न हो मंज़ूर जिसको साथ ग़म का
निकल जाए हमारी ज़िंदगी से
ख़राबी ख़ाक समझेंगे 'ख़ुदा' की
जिन्हें फ़ुर्सत नहीं है बंदगी से
बहुत देखे सिकंदर शाह हमने
गए तो हाथ ख़ाली थे ख़ुदी से
तिजारत क्या हमें रुस्वा करेगी
हमारी लौ लगी है मुफ़लिसी से !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
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