न दिल चाहते हैं न जां चाहते हैं
फ़क़त आशिक़ों की अमां चाहते हैं
उड़ानों पे बंदिश न पहरा सुरों पर
परिंदे खुला आस्मां चाहते हैं
मुरीदे-शहंशाह हद से गुज़र कर
रिआया के दोनों जहां चाहते हैं
क़फ़न खेंच कर लाश से वो हमारी
बदन पर वफ़ा के निशां चाहते हैं
उमीदे-रहम आपसे क्या करें हम
सितम भीड़ के दरमियां चाहते हैं
हमारे लिए गोश:-ए-दिल बहुत है
कहां तख़्ते-हिन्दोस्तां चाहते हैं
ख़ुदा मान ले शर्त्त तो चल पड़ें हम
कि क़द के मुताबिक़ मकां चाहते हैं !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : जां: प्राण; फ़क़त: मात्र; आशिक़ों: प्रेमियों; अमां: सुरक्षा; बंदिश: प्रतिबंध; परिंदे: पक्षीगण; आस्मां: आकाश; मुरीदे-शहंशाह: शासक के प्रशंसक/भक्त जन; हद: सीमा; रिआया: नागरिक गण; दोनों जहां: दोनों लोक, इहलोक-परलोक; क़फ़न: शवावरण; बदन: शरीर; वफ़ा: आस्था; निशां: चिह्न; उमीदे-रहम: दया की आशा; सितम: अत्याचार; दरमियां: मध्य; गोश:-ए-दिल: हृदय का कोना; तख़्ते-हिन्दोस्तां: भारत का सिंहासन; शर्त्त: दांव; क़द: आकार; मुताबिक़: अनुसार; मकां: आवास, समाधि।
फ़क़त आशिक़ों की अमां चाहते हैं
उड़ानों पे बंदिश न पहरा सुरों पर
परिंदे खुला आस्मां चाहते हैं
मुरीदे-शहंशाह हद से गुज़र कर
रिआया के दोनों जहां चाहते हैं
क़फ़न खेंच कर लाश से वो हमारी
बदन पर वफ़ा के निशां चाहते हैं
उमीदे-रहम आपसे क्या करें हम
सितम भीड़ के दरमियां चाहते हैं
हमारे लिए गोश:-ए-दिल बहुत है
कहां तख़्ते-हिन्दोस्तां चाहते हैं
ख़ुदा मान ले शर्त्त तो चल पड़ें हम
कि क़द के मुताबिक़ मकां चाहते हैं !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : जां: प्राण; फ़क़त: मात्र; आशिक़ों: प्रेमियों; अमां: सुरक्षा; बंदिश: प्रतिबंध; परिंदे: पक्षीगण; आस्मां: आकाश; मुरीदे-शहंशाह: शासक के प्रशंसक/भक्त जन; हद: सीमा; रिआया: नागरिक गण; दोनों जहां: दोनों लोक, इहलोक-परलोक; क़फ़न: शवावरण; बदन: शरीर; वफ़ा: आस्था; निशां: चिह्न; उमीदे-रहम: दया की आशा; सितम: अत्याचार; दरमियां: मध्य; गोश:-ए-दिल: हृदय का कोना; तख़्ते-हिन्दोस्तां: भारत का सिंहासन; शर्त्त: दांव; क़द: आकार; मुताबिक़: अनुसार; मकां: आवास, समाधि।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-07-2017) को "न दिमाग सोता है, न कलम" (चर्चा अंक-2659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'