जब जहालत गुनाह करती है
सल्तनत वाह वाह करती है
आइन-ए-मुल्क में बहुत कुछ है
क्या सियासत निबाह करती है
सल्तनत चार दिन नहीं चलती
जो सितम बेपनाह करती है
अस्लहे वो: असर नहीं करते
जो वफ़ा की निगाह करती है
आशिक़ी में अना कभी दिल को
तो कभी घर तबाह करती है
ख़ुर्दबीं है नज़र मुरीदों की
ख़ाक को मेह्रो-माह करती है
मौत को इश्क़ हो गया हमसे
मुख़बिरों से सलाह करती है !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जहालत: बुद्धिहीनता; सल्तनत: साम्राज्य; आइन-ए-मुल्क: देश का संविधान; सियासत: राजनीति; निबाह: निर्वाह; सितम: अत्याचार; बेपनाह: अत्यधिक, सीमाहीन; अस्लहे: अस्त्र-शस्त्र; वफ़ा: आस्था; अना: अहंकार; तबाह: ध्वस्त; ख़ुर्दबीं: सूक्ष्मदर्शी; नज़र: दृष्टि; मुरीदों: भक्तजन, प्रशंसक; ख़ाक: धूल; मेह्रो-माह: सूर्य और चंद्र; मुख़बिरों: समाचार देने वाले, गुप्तचर।
सल्तनत वाह वाह करती है
आइन-ए-मुल्क में बहुत कुछ है
क्या सियासत निबाह करती है
सल्तनत चार दिन नहीं चलती
जो सितम बेपनाह करती है
अस्लहे वो: असर नहीं करते
जो वफ़ा की निगाह करती है
आशिक़ी में अना कभी दिल को
तो कभी घर तबाह करती है
ख़ुर्दबीं है नज़र मुरीदों की
ख़ाक को मेह्रो-माह करती है
मौत को इश्क़ हो गया हमसे
मुख़बिरों से सलाह करती है !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जहालत: बुद्धिहीनता; सल्तनत: साम्राज्य; आइन-ए-मुल्क: देश का संविधान; सियासत: राजनीति; निबाह: निर्वाह; सितम: अत्याचार; बेपनाह: अत्यधिक, सीमाहीन; अस्लहे: अस्त्र-शस्त्र; वफ़ा: आस्था; अना: अहंकार; तबाह: ध्वस्त; ख़ुर्दबीं: सूक्ष्मदर्शी; नज़र: दृष्टि; मुरीदों: भक्तजन, प्रशंसक; ख़ाक: धूल; मेह्रो-माह: सूर्य और चंद्र; मुख़बिरों: समाचार देने वाले, गुप्तचर।
वाह । बहुत ख़ूब ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक