क़ैदे-ज़िन्दां-ए-उम्मीद में मिट गए
हम मुहब्बत की ताईद में मिट गए
चंद जज़्बात उन पर खुले ही नहीं
चंद अश्'आर तन्क़ीद में मिट गए
थे मुनव्वर कई नाम तारीख़ में
शाह की मश्क़े-तज्दीद में मिट गए
ढूंढते हैं निशानात तहज़ीब के
जो जहालत की तह् मीद में मिट गए
उम्र भर जो हवस में भटकते रहे
वो फ़क़ीरों की तक़लीद में मिट गए
हम चराग़े-वफ़ा थे अज़ल तक जिए
क़ुमक़ुमे रश्क़े-ख़ुर्शीद में मिट गए
लोग शिर्के-जली में वली हो गए
और हम फ़िक्रे-तौहीद में मिट गए !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ैदे-ज़िन्दां-ए-उम्मीद : आशा के कारागार का बंधन; ताईद : अनुमोदन, पक्षधरता; जज़्बात : भावनाएं; अश्'आर: (अनेक) शे'र, शे'र का बहुवचन; तन्क़ीद : टीका-टिप्पणी, आलोचना; मुनव्वर : प्रकाशवान, उज्ज्वल; तारीख़ : इतिहास; मश्क़े-तज्दीद : नवीनीकरण के प्रयास; निशानात : चिह्न (बहु.); तहज़ीब : सभ्यता; जहालत : अज्ञान, जड़ता; तह् मीद : प्रशंसा; हवस : वासना, लोभ; फ़क़ीरों : संतों, सिद्ध जन; तक़लीद : अनुकरण; चराग़े-वफ़ा : आस्था-दीप; अज़ल : प्रलय, नई सृष्टि का आरंभ; क़ुमक़ुमे : कृत्रिम, दिखावटी दीपक; रश्क़े-ख़ुर्शीद : सूर्य से ईर्ष्या; शिर्के-जली : जान-बूझ कर की जाने वाली व्यक्ति-पूजा, चापलूसी; फ़िक्रे-तौहीद: अद्वैत-चिंतन।
हम मुहब्बत की ताईद में मिट गए
चंद जज़्बात उन पर खुले ही नहीं
चंद अश्'आर तन्क़ीद में मिट गए
थे मुनव्वर कई नाम तारीख़ में
शाह की मश्क़े-तज्दीद में मिट गए
ढूंढते हैं निशानात तहज़ीब के
जो जहालत की तह् मीद में मिट गए
उम्र भर जो हवस में भटकते रहे
वो फ़क़ीरों की तक़लीद में मिट गए
हम चराग़े-वफ़ा थे अज़ल तक जिए
क़ुमक़ुमे रश्क़े-ख़ुर्शीद में मिट गए
लोग शिर्के-जली में वली हो गए
और हम फ़िक्रे-तौहीद में मिट गए !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़ैदे-ज़िन्दां-ए-उम्मीद : आशा के कारागार का बंधन; ताईद : अनुमोदन, पक्षधरता; जज़्बात : भावनाएं; अश्'आर: (अनेक) शे'र, शे'र का बहुवचन; तन्क़ीद : टीका-टिप्पणी, आलोचना; मुनव्वर : प्रकाशवान, उज्ज्वल; तारीख़ : इतिहास; मश्क़े-तज्दीद : नवीनीकरण के प्रयास; निशानात : चिह्न (बहु.); तहज़ीब : सभ्यता; जहालत : अज्ञान, जड़ता; तह् मीद : प्रशंसा; हवस : वासना, लोभ; फ़क़ीरों : संतों, सिद्ध जन; तक़लीद : अनुकरण; चराग़े-वफ़ा : आस्था-दीप; अज़ल : प्रलय, नई सृष्टि का आरंभ; क़ुमक़ुमे : कृत्रिम, दिखावटी दीपक; रश्क़े-ख़ुर्शीद : सूर्य से ईर्ष्या; शिर्के-जली : जान-बूझ कर की जाने वाली व्यक्ति-पूजा, चापलूसी; फ़िक्रे-तौहीद: अद्वैत-चिंतन।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें