तुझे मुर्शिदो-मुस्तफ़ा भी कहेंगे
जिन्हें ग़र्ज़ है वो ख़ुदा भी कहेंगे
न जाने मेरे दोस्त क्या चाहते हैं
मुहब्बत करेंगे बुरा भी कहेंगे
मेरे मेज़्बां के इरादे ग़ज़ब हैं
बुलाएंगे घर तख़्लिया भी कहेंगे
अभी तक तेरा नंग ही सामने है
सबूते-हया दे हया भी कहेंगे
हुकूमत से तेरी नहीं मुत्मईं हम
जिन्हें नाज़ है वो भला भी कहेंगे
ज़माने के दुःख-दर्द को गर समझ ले
तो कुछ और दिल के सिवा भी कहेंगे
;
तू जन्नत की ज़द से निकल आए तो हम
तुझे शौक़ से दिलरुबा भी कहेंगे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुर्शिद : संत; मुस्तफ़ा: पैग़म्बर, ईश्वरीय दूत; ग़र्ज़ : स्वार्थ; मेज़बां : आतिथ्य कर्त्ता; तख़्लिया : एकांत;
नंग : निर्लज्जता; सबूते-हया : लज्जा का प्रमाण; मुत्मईं : संतुष्ट, आश्वस्त; नाज़ : गर्व; गर : यदि; जन्नत : स्वर्ग;
ज़द : पकड़, पहुंच; शौक़ : रुचि; दिलरुबा : मनमोहक।
जिन्हें ग़र्ज़ है वो ख़ुदा भी कहेंगे
न जाने मेरे दोस्त क्या चाहते हैं
मुहब्बत करेंगे बुरा भी कहेंगे
मेरे मेज़्बां के इरादे ग़ज़ब हैं
बुलाएंगे घर तख़्लिया भी कहेंगे
अभी तक तेरा नंग ही सामने है
सबूते-हया दे हया भी कहेंगे
हुकूमत से तेरी नहीं मुत्मईं हम
जिन्हें नाज़ है वो भला भी कहेंगे
ज़माने के दुःख-दर्द को गर समझ ले
तो कुछ और दिल के सिवा भी कहेंगे
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तू जन्नत की ज़द से निकल आए तो हम
तुझे शौक़ से दिलरुबा भी कहेंगे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुर्शिद : संत; मुस्तफ़ा: पैग़म्बर, ईश्वरीय दूत; ग़र्ज़ : स्वार्थ; मेज़बां : आतिथ्य कर्त्ता; तख़्लिया : एकांत;
नंग : निर्लज्जता; सबूते-हया : लज्जा का प्रमाण; मुत्मईं : संतुष्ट, आश्वस्त; नाज़ : गर्व; गर : यदि; जन्नत : स्वर्ग;
ज़द : पकड़, पहुंच; शौक़ : रुचि; दिलरुबा : मनमोहक।
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