जंगजू ख़्वाब जंगजू क़िस्से
लो मियां हो गए शुरू क़िस्से
सुस्त रफ़्तार थी हक़ीक़त की
बन गए आज जुस्तजू क़िस्से
चंद तब्दीलियां ज़रूरी हैं
कौन दोहराए हू ब हू क़िस्से
नंग(ए)तहज़ीब का ज़माना है
तो उड़ें क्यूं न चारसू क़िस्से
काश ! रहती ज़ुबान क़ाबू में
ले गए घर की आबरू क़िस्से
कोई ख़ामोशियां बचा रक्खे
पी चुके हैं बहुत लहू क़िस्से
बाग़े जन्नत में ख़ौफ़ तारी है
कर गए क़त्ल रंगो-बू किस्से !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जंगजू : युद्धोन्मादी, आक्रामक; क़िस्से : आख्यान, कथा, मिथक; रफ़्तार : गति; हक़ीक़त : यथार्थ; जुस्तजू: खोज; तब्दीलियां : परिवर्त्तन; हू ब हू : यथावत; नंग(ए)तहज़ीब : सभ्यता का अभाव; चारसू : चारों ओर; क़ाबू : नियंत्रण; आबरू : सम्मान; ख़ामोशियां : मौन, शांति; लहू : रक्त; बाग़े जन्नत : स्वर्ग का उद्यान; ख़ौफ़ : भय, आतंक; तारी : व्याप्त ।
लो मियां हो गए शुरू क़िस्से
सुस्त रफ़्तार थी हक़ीक़त की
बन गए आज जुस्तजू क़िस्से
चंद तब्दीलियां ज़रूरी हैं
कौन दोहराए हू ब हू क़िस्से
नंग(ए)तहज़ीब का ज़माना है
तो उड़ें क्यूं न चारसू क़िस्से
काश ! रहती ज़ुबान क़ाबू में
ले गए घर की आबरू क़िस्से
कोई ख़ामोशियां बचा रक्खे
पी चुके हैं बहुत लहू क़िस्से
बाग़े जन्नत में ख़ौफ़ तारी है
कर गए क़त्ल रंगो-बू किस्से !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जंगजू : युद्धोन्मादी, आक्रामक; क़िस्से : आख्यान, कथा, मिथक; रफ़्तार : गति; हक़ीक़त : यथार्थ; जुस्तजू: खोज; तब्दीलियां : परिवर्त्तन; हू ब हू : यथावत; नंग(ए)तहज़ीब : सभ्यता का अभाव; चारसू : चारों ओर; क़ाबू : नियंत्रण; आबरू : सम्मान; ख़ामोशियां : मौन, शांति; लहू : रक्त; बाग़े जन्नत : स्वर्ग का उद्यान; ख़ौफ़ : भय, आतंक; तारी : व्याप्त ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भाखड़ा नंगल डैम पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं