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शनिवार, 24 सितंबर 2016

हम ख़ुद बताएं

न  तुम  कुछ  कहोगे  न  हम  कुछ  कहेंगे
यहां  सिर्फ़  अह् ले-सितम   कुछ  कहेंगे

जहां  तुमको  एहसासे-तनहाई  होगा
वहां  मेरे  नक़्शे-क़दम  कुछ  कहेंगे

ज़ुबां  को  जहां  पर  इजाज़त  न  होगी
वहां  पर  तेरे  चश्मे-नम  कुछ  कहेंगे

अभी  आपका  वक़्त  है  आप  कहिए
किसी  रोज़  बीमारे-ग़म  कुछ  कहेंगे

न  कहिए  हमें  आप  सच  बोलने  को
य.कीं  कुछ  कहेगा  वहम  कुछ  कहेंगे

मुनासिब  नहीं  है  कि  हम  ख़ुद  बताएं
हमारे  चलन  पर  सनम  कुछ  कहेंगे

हमें  क्यूं  न  उमराह  की  हो  इजाज़त
कभी  इस  पे  शाहे-हरम  कुछ  कहेंगे ?

                                                                    (2016)

                                                             -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ ;





1 टिप्पणी:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-09-2016) के चर्चा मंच "शिकारी और शिकार" (चर्चा अंक-2476) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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