न तुम कुछ कहोगे न हम कुछ कहेंगे
यहां सिर्फ़ अह् ले-सितम कुछ कहेंगे
जहां तुमको एहसासे-तनहाई होगा
वहां मेरे नक़्शे-क़दम कुछ कहेंगे
ज़ुबां को जहां पर इजाज़त न होगी
वहां पर तेरे चश्मे-नम कुछ कहेंगे
अभी आपका वक़्त है आप कहिए
किसी रोज़ बीमारे-ग़म कुछ कहेंगे
न कहिए हमें आप सच बोलने को
य.कीं कुछ कहेगा वहम कुछ कहेंगे
मुनासिब नहीं है कि हम ख़ुद बताएं
हमारे चलन पर सनम कुछ कहेंगे
हमें क्यूं न उमराह की हो इजाज़त
कभी इस पे शाहे-हरम कुछ कहेंगे ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ ;
यहां सिर्फ़ अह् ले-सितम कुछ कहेंगे
जहां तुमको एहसासे-तनहाई होगा
वहां मेरे नक़्शे-क़दम कुछ कहेंगे
ज़ुबां को जहां पर इजाज़त न होगी
वहां पर तेरे चश्मे-नम कुछ कहेंगे
अभी आपका वक़्त है आप कहिए
किसी रोज़ बीमारे-ग़म कुछ कहेंगे
न कहिए हमें आप सच बोलने को
य.कीं कुछ कहेगा वहम कुछ कहेंगे
मुनासिब नहीं है कि हम ख़ुद बताएं
हमारे चलन पर सनम कुछ कहेंगे
हमें क्यूं न उमराह की हो इजाज़त
कभी इस पे शाहे-हरम कुछ कहेंगे ?
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ ;
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-09-2016) के चर्चा मंच "शिकारी और शिकार" (चर्चा अंक-2476) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'