दिल पे बंदिश तो कुछ बह्र की है
कुछ इनायत तेरी नज़्र की है
आज साक़ी सलाम कर बैठा
सारी मस्ती उसी अस्र की है
कोई इन्'.आम क्या हमें देगा
फ़िक्र अश्'आर की क़द्र की है
अर्श ने जो हमें पिलाया था
रुख़ पे रंगत उसी ज़ह्र की है
बर्क़ कब घर जला सकी मेरा
बात सरकार के क़ह्र की है
गिर गई जो ग़रीब के ग़म से
छत शहंशाह के क़स्र की है
शाह की रूह स्याह अब भी है
रौशनी तो चराग़े क़ब्र की है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थः बंदिश : बंधन; बह्र : छंद,धड़कन; इनायत : कृपा; नज़्र : नज़र, दृष्टि; साक़ी : मदिरा पिलाने वाला; अस्र : प्रभाव; इन्'.आम : पुरस्कार; अश्'आर : शे'र का बहुवचन; अर्श: आकाश, देवता गण; रुख़ : मुख; ज़ह्र : ज़हर, विष; बर्क़: आकाशीय बिजली; क़ह्र : ;अत्याचार; ग़म: दुःख; क़स्र : महल; रूह: आत्मा; स्याह: कृष्णवर्णी, काली; रौशनी: प्रकाश; चराग़े क़ब्र ; समाधि पर रखा हुआ दीपक।
कुछ इनायत तेरी नज़्र की है
आज साक़ी सलाम कर बैठा
सारी मस्ती उसी अस्र की है
कोई इन्'.आम क्या हमें देगा
फ़िक्र अश्'आर की क़द्र की है
अर्श ने जो हमें पिलाया था
रुख़ पे रंगत उसी ज़ह्र की है
बर्क़ कब घर जला सकी मेरा
बात सरकार के क़ह्र की है
गिर गई जो ग़रीब के ग़म से
छत शहंशाह के क़स्र की है
शाह की रूह स्याह अब भी है
रौशनी तो चराग़े क़ब्र की है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थः बंदिश : बंधन; बह्र : छंद,धड़कन; इनायत : कृपा; नज़्र : नज़र, दृष्टि; साक़ी : मदिरा पिलाने वाला; अस्र : प्रभाव; इन्'.आम : पुरस्कार; अश्'आर : शे'र का बहुवचन; अर्श: आकाश, देवता गण; रुख़ : मुख; ज़ह्र : ज़हर, विष; बर्क़: आकाशीय बिजली; क़ह्र : ;अत्याचार; ग़म: दुःख; क़स्र : महल; रूह: आत्मा; स्याह: कृष्णवर्णी, काली; रौशनी: प्रकाश; चराग़े क़ब्र ; समाधि पर रखा हुआ दीपक।
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