कहीं ज़्यादा कहीं कम है
जहां देखो वहीं ग़म है
तुम्हारे सौ ठिकाने हैं
हमारा कौन हमदम है
मरीज़े इश्क़ की ख़ातिर
न पुरसा है न मरहम है
जहां उम्मीद है तेरी
वहां की राह पुरख़म है
बुला लो या चले आओ
तुम्हारा ख़ैरमक़्दम है
वतन की नौजवानी में
कहीं पैबस्त मातम है
बग़ावत कर कि रोता रह
निज़ामे ज़ुल्म क़ायम है
बदल दे रूह 'जन्नत' की
अगर शद्दाद में दम है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ठिकाने : संपर्क; हमदम: साथी, सहयात्री; मरीज़े-इश्क़ : प्रेम का रोगी, ख़ातिर : हेतु; पुरसा : सांत्वना; पुरख़म : मोड़ों से भरा, घुमावदार; ख़ैरमक़्दम: स्वागत; नौजवानी: युवा वर्ग; पैबस्त: टंकित, बंधा हुआ; मातम:निराशा, शोक, अवसाद; बग़ावत : विद्रोह; निज़ामे-ज़ुल्म : अत्याचार का शासन; क़ायम: वर्त्तमान, स्थापित; 'जन्नत': स्वर्ग, यहां कश्मीर; शद्दाद : एक अहंकारी शासक जो अपने को ईश्वर मानता था और जिसने एक कृत्रिम स्वर्ग बनाने का प्रयास किया ।
जहां देखो वहीं ग़म है
तुम्हारे सौ ठिकाने हैं
हमारा कौन हमदम है
मरीज़े इश्क़ की ख़ातिर
न पुरसा है न मरहम है
जहां उम्मीद है तेरी
वहां की राह पुरख़म है
बुला लो या चले आओ
तुम्हारा ख़ैरमक़्दम है
वतन की नौजवानी में
कहीं पैबस्त मातम है
बग़ावत कर कि रोता रह
निज़ामे ज़ुल्म क़ायम है
बदल दे रूह 'जन्नत' की
अगर शद्दाद में दम है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ठिकाने : संपर्क; हमदम: साथी, सहयात्री; मरीज़े-इश्क़ : प्रेम का रोगी, ख़ातिर : हेतु; पुरसा : सांत्वना; पुरख़म : मोड़ों से भरा, घुमावदार; ख़ैरमक़्दम: स्वागत; नौजवानी: युवा वर्ग; पैबस्त: टंकित, बंधा हुआ; मातम:निराशा, शोक, अवसाद; बग़ावत : विद्रोह; निज़ामे-ज़ुल्म : अत्याचार का शासन; क़ायम: वर्त्तमान, स्थापित; 'जन्नत': स्वर्ग, यहां कश्मीर; शद्दाद : एक अहंकारी शासक जो अपने को ईश्वर मानता था और जिसने एक कृत्रिम स्वर्ग बनाने का प्रयास किया ।
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