एहसासे कमतरी से किसी का भला नहीं
क्या इश्क़ कीजिए कि अगर दिल खुला नहीं
ख़्वाबो ख़्याल में ही सही राब्ता तो है
हों लाख दूर दूर मगर फ़ासला नहीं
तेरी निगाहे बर्क़ गिरी दिल पे जिस जगह
हलचल हुई ज़रूर मगर ज़लज़ला नहीं
ग़ालिब से पूछते हैं मीर का मेयार क्या
यारों के पास और कोई मश्ग़ला नहीं
वो कोह था पिघल गया तेरे जलाल से
अल्मास थे हम जिस्म हमारा जला नहीं
होते हैं क़त्ल रोज़ फ़रिश्ते बिला गुनाह
जन्नत सुलग रही है 'ख़ुदा' को गिला नहीं
राहे ख़ुदी में साथ न दे पाएंगे मियां
लंबा सफ़र है और कोई मरहला नहीं
करके दुआ सलाम निकल आए ख़ुल्द से
'उस शख़्स' से मिज़ाज हमारा मिला नहीं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसासे कमतरी : हीन भावना; ख़्वाबो ख़्याल; स्वप्न एवं चिंतन; राब्ता : संपर्क ; फ़ासला :अंतराल, दूरी; निगाहे बर्क़: बिजली जैसी दृष्टि; ज़लज़ला : भूकंप ; 'ग़ालिब', मीर : उर्दू के महानतम शायर ; मेयार: स्तर ; मश्ग़ला : व्यस्तता ; कोह : पर्वत ; जलाल ; तेज ; अल्मास : वज्र, हीरा ; जिस्म : शरीर ; फ़रिश्ते ; देवदूत ; बिला : बिना ; गुनाह : अपराध ; जन्नत : स्वर्ग ; 'ख़ुदा': मालिक, शासक; गिला : शिकायत ; राहे-ख़ुदी : आत्म-बोध का मार्ग ; मियां : श्रीमान,सज्जन ; मरहला: पड़ाव ; दुआ सलाम :औपचारिकता ; ख़ुल्द : स्वर्ग, जन्नत का पर्यायवाची ।
क्या इश्क़ कीजिए कि अगर दिल खुला नहीं
ख़्वाबो ख़्याल में ही सही राब्ता तो है
हों लाख दूर दूर मगर फ़ासला नहीं
तेरी निगाहे बर्क़ गिरी दिल पे जिस जगह
हलचल हुई ज़रूर मगर ज़लज़ला नहीं
ग़ालिब से पूछते हैं मीर का मेयार क्या
यारों के पास और कोई मश्ग़ला नहीं
वो कोह था पिघल गया तेरे जलाल से
अल्मास थे हम जिस्म हमारा जला नहीं
होते हैं क़त्ल रोज़ फ़रिश्ते बिला गुनाह
जन्नत सुलग रही है 'ख़ुदा' को गिला नहीं
राहे ख़ुदी में साथ न दे पाएंगे मियां
लंबा सफ़र है और कोई मरहला नहीं
करके दुआ सलाम निकल आए ख़ुल्द से
'उस शख़्स' से मिज़ाज हमारा मिला नहीं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसासे कमतरी : हीन भावना; ख़्वाबो ख़्याल; स्वप्न एवं चिंतन; राब्ता : संपर्क ; फ़ासला :अंतराल, दूरी; निगाहे बर्क़: बिजली जैसी दृष्टि; ज़लज़ला : भूकंप ; 'ग़ालिब', मीर : उर्दू के महानतम शायर ; मेयार: स्तर ; मश्ग़ला : व्यस्तता ; कोह : पर्वत ; जलाल ; तेज ; अल्मास : वज्र, हीरा ; जिस्म : शरीर ; फ़रिश्ते ; देवदूत ; बिला : बिना ; गुनाह : अपराध ; जन्नत : स्वर्ग ; 'ख़ुदा': मालिक, शासक; गिला : शिकायत ; राहे-ख़ुदी : आत्म-बोध का मार्ग ; मियां : श्रीमान,सज्जन ; मरहला: पड़ाव ; दुआ सलाम :औपचारिकता ; ख़ुल्द : स्वर्ग, जन्नत का पर्यायवाची ।
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