कुछ कहा कुछ अनकहा रह जाएगा
ख़ून सीने में जमा रह जाएगा
कल न होंगे हम नज़र के सामने
एक एहसासे-वफ़ा रह जाएगा
भुखमरी बेरोज़गारी ख़ुदकुशी
क्या यही सब देखना रह जाएगा
सल्तनत है आज कल ढह जाएगी
ज़ख्म लेकिन टीसता रह जाएगा
आम इंसां लाम पर जब आएगा
बुत गिरेंगे मक़बरा रह जाएगा
बंद होगी जब बयाज़े-ज़िंदगी
कोई सफ़हा अधखुला रह जाएगा
चल दिए हम आपका दिल छोड़ कर
सिर्फ़ ख़ाली दायरा रह जाएगा !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसासे-वफ़ा : आस्था की अनुभूति; सल्तनत : साम्राज्य; ज़ख्म : घाव; आम इंसां : जन-साधारण; बुत: मूर्त्ति; मक़बरा : समाधि; बयाज़े-ज़िंदगी : जीवन की दैनंदिनी; सफ़हा : पृष्ठ; दायरा : घेरा ।
ख़ून सीने में जमा रह जाएगा
कल न होंगे हम नज़र के सामने
एक एहसासे-वफ़ा रह जाएगा
भुखमरी बेरोज़गारी ख़ुदकुशी
क्या यही सब देखना रह जाएगा
सल्तनत है आज कल ढह जाएगी
ज़ख्म लेकिन टीसता रह जाएगा
आम इंसां लाम पर जब आएगा
बुत गिरेंगे मक़बरा रह जाएगा
बंद होगी जब बयाज़े-ज़िंदगी
कोई सफ़हा अधखुला रह जाएगा
चल दिए हम आपका दिल छोड़ कर
सिर्फ़ ख़ाली दायरा रह जाएगा !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहसासे-वफ़ा : आस्था की अनुभूति; सल्तनत : साम्राज्य; ज़ख्म : घाव; आम इंसां : जन-साधारण; बुत: मूर्त्ति; मक़बरा : समाधि; बयाज़े-ज़िंदगी : जीवन की दैनंदिनी; सफ़हा : पृष्ठ; दायरा : घेरा ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-08-2016) को "कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित" (चर्चा अंक-2441) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'