रोकिए कोई इस दिवाने को
फिर चला आशियां लुटाने को
बात यूं कुछ नहीं बताने को
दिल मरा जाए है सुनाने को
ढूंढिए और दिल मुहल्ले में
क्या हमीं हैं सितम उठाने को
ईद को चार दिन बक़ाया हैं
चार सदियां क़रीब आने को
शायरों को ज़मीं नहीं मिलती
दश्त तक में मकां बनाने को
रास्ते सख़्त मंज़िलें मुश्किल
पांव बेताब दूर जाने को
सुब्ह कहती है इक अहद कर ले
आज कुछ कर दिखा ज़माने को
हिज्र का दौर कट गया यूं तो
चाहिए वक़्त ग़म भुलाने को !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : दिवाने : उन्मत्त; आशियां : घर-बार ; हमीं : हम ही ; सितम : अत्याचार ; दश्त : वन ; मकां : आवास, समाधि ; मंज़िलें : लक्ष्य ; बेताब : व्यग्र ; अहद : संकल्प ; हिज्र : वियोग ; दौर : काल, युग ।
फिर चला आशियां लुटाने को
बात यूं कुछ नहीं बताने को
दिल मरा जाए है सुनाने को
ढूंढिए और दिल मुहल्ले में
क्या हमीं हैं सितम उठाने को
ईद को चार दिन बक़ाया हैं
चार सदियां क़रीब आने को
शायरों को ज़मीं नहीं मिलती
दश्त तक में मकां बनाने को
रास्ते सख़्त मंज़िलें मुश्किल
पांव बेताब दूर जाने को
सुब्ह कहती है इक अहद कर ले
आज कुछ कर दिखा ज़माने को
हिज्र का दौर कट गया यूं तो
चाहिए वक़्त ग़म भुलाने को !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : दिवाने : उन्मत्त; आशियां : घर-बार ; हमीं : हम ही ; सितम : अत्याचार ; दश्त : वन ; मकां : आवास, समाधि ; मंज़िलें : लक्ष्य ; बेताब : व्यग्र ; अहद : संकल्प ; हिज्र : वियोग ; दौर : काल, युग ।
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