जो आशिक़ों की क़दर न होगी
क़ज़ा से पहले मेहर न होगी
रहें अगर वो: क़रीब दिल के
ख़ुशी कभी मुख़्तसर न होगी
बसे हैं दिल में तो बे-ख़बर हैं
उजड़ गए तो ख़बर न होगी
अभी हया के सुरूर में हैं
निगाहे-मोहसिन इधर न होगी
बहिश्त जा कर भी देख लीजे
बिना हमारे गुज़र न होगी
दिले-ख़ुदा में जगह न हो तो
कोई दुआ कारगर न होगी
न देंगे गर हम अज़ान दिल से
यक़ीन कीजे सहर न होगी !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़दर: सम्मान ; क़ज़ा : मृत्यु; मेहर : ईश्वरीय कृपा; मुख़्तसर : संक्षिप्त ; हया : लज्जा; सुरूर: मद ; निगाहे-मोहसिन :अनुग्रह करने वाले की दृष्टि; बहिश्त: स्वर्ग; गुज़र: निर्वाह; दुआ: प्रार्थना; कारगर: प्रभावी;
सहर: उष:।
क़ज़ा से पहले मेहर न होगी
रहें अगर वो: क़रीब दिल के
ख़ुशी कभी मुख़्तसर न होगी
बसे हैं दिल में तो बे-ख़बर हैं
उजड़ गए तो ख़बर न होगी
अभी हया के सुरूर में हैं
निगाहे-मोहसिन इधर न होगी
बहिश्त जा कर भी देख लीजे
बिना हमारे गुज़र न होगी
दिले-ख़ुदा में जगह न हो तो
कोई दुआ कारगर न होगी
न देंगे गर हम अज़ान दिल से
यक़ीन कीजे सहर न होगी !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़दर: सम्मान ; क़ज़ा : मृत्यु; मेहर : ईश्वरीय कृपा; मुख़्तसर : संक्षिप्त ; हया : लज्जा; सुरूर: मद ; निगाहे-मोहसिन :अनुग्रह करने वाले की दृष्टि; बहिश्त: स्वर्ग; गुज़र: निर्वाह; दुआ: प्रार्थना; कारगर: प्रभावी;
सहर: उष:।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Beyhetrin khyalaat...
जवाब देंहटाएंBeyhetrin khyalaat...
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