हमारे दिल की हरारत किसी को क्या मालूम
ये: मर्ज़ है कि मुहब्बत किसी को क्या मालूम
बड़े सुकूं से वो: शाने मिलाए बैठे थे
कहां हुई है शरारत किसी को क्या मालूम
सुबह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
ये: इम्तिहां है कि चाहत किसी को क्या मालूम
किया करो हो बहुत तंज़ शक्लो-सूरत पर
हमारे तर्बो-तबीयत किसी को क्या मालूम
निज़ाम को है फ़िक्र बस रसूख़दारों की
कहां करेंगे इनायत किसी को क्या मालूम
हरेक दरिय : को प्यारी है अपनी आज़ादी
समंदरों की सियासत किसी को क्या मालूम
अभी-अभी तो कहन में निखार आया है
अभी हमारी मुहब्बत किसी को क्या मालूम
पढ़ी नमाज़ न सज्दागुज़ार हैं उनके
हमारा रंगे-इबादत किसी को क्या मालूम !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हरारत : ताप ; मर्ज़ : रोग ; सुकूं : आश्वस्ति ; शाने : कंधे ; तलक : तक ; इम्तिहां : परीक्षा ; चाहत : इच्छा ; करो हो : करते हो ; तंज़ : व्यंग्य ; शक्लो-सूरत : मुखाकृति ; तर्बो-तबीयत : संस्कार और स्वभाव ; निज़ाम : प्रशासन, सरकार ; रसूख़दारों : प्रभावशाली व्यक्तियों ; इनायत : कृपा ; दरिय: : नदी ; कहन :शैली;
सज्दागुज़ार :दंडवत प्रणाम करने वाले; रंगे-इबादत : पूजा का ढंग ।
ये: मर्ज़ है कि मुहब्बत किसी को क्या मालूम
बड़े सुकूं से वो: शाने मिलाए बैठे थे
कहां हुई है शरारत किसी को क्या मालूम
सुबह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
ये: इम्तिहां है कि चाहत किसी को क्या मालूम
किया करो हो बहुत तंज़ शक्लो-सूरत पर
हमारे तर्बो-तबीयत किसी को क्या मालूम
निज़ाम को है फ़िक्र बस रसूख़दारों की
कहां करेंगे इनायत किसी को क्या मालूम
हरेक दरिय : को प्यारी है अपनी आज़ादी
समंदरों की सियासत किसी को क्या मालूम
अभी-अभी तो कहन में निखार आया है
अभी हमारी मुहब्बत किसी को क्या मालूम
पढ़ी नमाज़ न सज्दागुज़ार हैं उनके
हमारा रंगे-इबादत किसी को क्या मालूम !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हरारत : ताप ; मर्ज़ : रोग ; सुकूं : आश्वस्ति ; शाने : कंधे ; तलक : तक ; इम्तिहां : परीक्षा ; चाहत : इच्छा ; करो हो : करते हो ; तंज़ : व्यंग्य ; शक्लो-सूरत : मुखाकृति ; तर्बो-तबीयत : संस्कार और स्वभाव ; निज़ाम : प्रशासन, सरकार ; रसूख़दारों : प्रभावशाली व्यक्तियों ; इनायत : कृपा ; दरिय: : नदी ; कहन :शैली;
सज्दागुज़ार :दंडवत प्रणाम करने वाले; रंगे-इबादत : पूजा का ढंग ।
Bahut umda
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