आपकी सारी जफ़ा के बावजूद
जी उठे हम बद्दुआ के बावजूद
वस्ल की शब हो गए फिर हम उदास
यार की दिलकश अदा के बावजूद
है मरीज़े-इश्क़ अब भी लाइलाज
ख़ास लुकमानी दवा के बावजूद
शान से रौशन रखे हमने चराग़
नूर की दुश्मन हवा के बावजूद
लोग दहशत में रहें क्यूं कर जनाब
शह्र की रंगीं फ़िज़ा के बावजूद
जाहिलों में आ नहीं जाता शुऊर
ख़ुल्द में दर्से-ख़ुदा के बावजूद
क्यूं ख़ुदा दहक़ान से है बेनियाज़
रात- दिन हम्दो-सना के बावजूद
अब मुअज़्ज़िन दे नहीं पाता अज़ान
दिलनशीं बादे-सबा के बावजूद
शबो-शब घटता गया उनका मेयार
दिन ब दिन बढ़ती अना के बावजूद !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जफ़ा: छल; बावजूद: बाद भी; वस्ल की शब: मिलन-निशा; दिलकश: चित्ताकर्षक; अदा:भंगिमा; मरीज़े-इश्क़: प्रेम-रोगी; लाइलाज: अनुपचार्य; लुकमानी: यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रसिद्धतम चिकित्सक; शान:भव्यता; रौशन: प्रज्ज्वलित; चराग़; दीपक; नूर:प्रकाश; दहशत: आतंक; शह्र: नगर; रंगीं:सुंदर, विविधतापूर्ण; फ़िज़ा: पर्यावरण; जाहिलों: जड़-बुद्धि व्यक्तियों; शुऊर: शिष्टाचार; ख़ुल्द:स्वर्ग; दर्से-ख़ुदा: ईश्वरीय उपदेश; दहक़ान:कृषकों; बेनियाज़: असंपृक्त; हम्दो-सना:पूजा-आरती; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; दिलनशीं: मनोहारी; बादे-सबा:प्रभात-समीर; शबो-शब: निशा-प्रतिनिशा; मेयार: सामाजिक उच्च-स्थिति, प्रतिष्ठा; दिन ब दिन: दिन-प्रतिदिन; अना:ठसक।
जी उठे हम बद्दुआ के बावजूद
वस्ल की शब हो गए फिर हम उदास
यार की दिलकश अदा के बावजूद
है मरीज़े-इश्क़ अब भी लाइलाज
ख़ास लुकमानी दवा के बावजूद
शान से रौशन रखे हमने चराग़
नूर की दुश्मन हवा के बावजूद
लोग दहशत में रहें क्यूं कर जनाब
शह्र की रंगीं फ़िज़ा के बावजूद
जाहिलों में आ नहीं जाता शुऊर
ख़ुल्द में दर्से-ख़ुदा के बावजूद
क्यूं ख़ुदा दहक़ान से है बेनियाज़
रात- दिन हम्दो-सना के बावजूद
अब मुअज़्ज़िन दे नहीं पाता अज़ान
दिलनशीं बादे-सबा के बावजूद
शबो-शब घटता गया उनका मेयार
दिन ब दिन बढ़ती अना के बावजूद !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जफ़ा: छल; बावजूद: बाद भी; वस्ल की शब: मिलन-निशा; दिलकश: चित्ताकर्षक; अदा:भंगिमा; मरीज़े-इश्क़: प्रेम-रोगी; लाइलाज: अनुपचार्य; लुकमानी: यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रसिद्धतम चिकित्सक; शान:भव्यता; रौशन: प्रज्ज्वलित; चराग़; दीपक; नूर:प्रकाश; दहशत: आतंक; शह्र: नगर; रंगीं:सुंदर, विविधतापूर्ण; फ़िज़ा: पर्यावरण; जाहिलों: जड़-बुद्धि व्यक्तियों; शुऊर: शिष्टाचार; ख़ुल्द:स्वर्ग; दर्से-ख़ुदा: ईश्वरीय उपदेश; दहक़ान:कृषकों; बेनियाज़: असंपृक्त; हम्दो-सना:पूजा-आरती; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; दिलनशीं: मनोहारी; बादे-सबा:प्रभात-समीर; शबो-शब: निशा-प्रतिनिशा; मेयार: सामाजिक उच्च-स्थिति, प्रतिष्ठा; दिन ब दिन: दिन-प्रतिदिन; अना:ठसक।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें