हम पे अक्सर क़ुसूर आता है
तिश् नगी में सुरूर आता है
आजकल हर बहार का मौसम
इस मोहल्ले से दूर आता है
और कुछ आए या नहीं उनको
दिल जलाना ज़ुरूर आता है
है अभी उम्र पर निकलने की
देखिए, कब शऊर आता है
शाह है तो बिठाएं क्या सर पर
क्या हमें कम ग़ुरूर आता है
दिल मुलाज़िम नहीं रईसों का
सब्र रखिए हुज़ूर आता है
दौड़ आते हैं आस्मां वाले
जब अक़ीदत पे नूर आता है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक्सर: अधिकांशतः; क़ुसूर: दोष, आरोप; तिश् नगी: तृष्णा; सुरूर: उन्माद; पर: पंख; शऊर: ढंग, समझ; ग़ुरूर: घमंड; मुलाज़िम: सेवक; रईसो: समृद्धों; सब्र: धैर्य; हुज़ूर: श्रीमान; आस्मां वाले: आकाशीय लोग, देवता गण; अक़ीदत: श्रद्धा, आस्था; नूर: तेज, प्रकाश, संबोधि।
तिश् नगी में सुरूर आता है
आजकल हर बहार का मौसम
इस मोहल्ले से दूर आता है
और कुछ आए या नहीं उनको
दिल जलाना ज़ुरूर आता है
है अभी उम्र पर निकलने की
देखिए, कब शऊर आता है
शाह है तो बिठाएं क्या सर पर
क्या हमें कम ग़ुरूर आता है
दिल मुलाज़िम नहीं रईसों का
सब्र रखिए हुज़ूर आता है
दौड़ आते हैं आस्मां वाले
जब अक़ीदत पे नूर आता है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक्सर: अधिकांशतः; क़ुसूर: दोष, आरोप; तिश् नगी: तृष्णा; सुरूर: उन्माद; पर: पंख; शऊर: ढंग, समझ; ग़ुरूर: घमंड; मुलाज़िम: सेवक; रईसो: समृद्धों; सब्र: धैर्य; हुज़ूर: श्रीमान; आस्मां वाले: आकाशीय लोग, देवता गण; अक़ीदत: श्रद्धा, आस्था; नूर: तेज, प्रकाश, संबोधि।
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