शाम का दिल लूट कर चलते बने
आप महफ़िल लूट कर चलते बने
हम उन्हें हमदर्द समझे थे मगर
जान क़ातिल लूट कर चलते बने
हमसफ़र बन कर मिले थे जो हमें
जश्ने-मंज़िल लूट कर चलते बने
जंग तूफ़ां से लड़े जिनके लिए
मौजे-साहिल लूट कर चलते बने
सिर्फ़ सामां-ए-दफ़न था हाथ में
चंद ग़ाफ़िल लूट कर चलते बने
मिट गए दहक़ां फ़सल के वास्ते
शाह हासिल लूट कर चलते बने
मोतबर थे ख़्वाब यूं तो फज्र तक
आंख का तिल लूट कर चलते बने !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़िल: सभा, गोष्ठी; हमदर्द: दुःख में सहभागी; क़ातिल: हत्यारा; हमसफ़र: सहयात्री; जश्ने-मंज़िल: लक्ष्य-प्राप्ति का उत्सव, श्रेय; जंग: युद्ध; तूफ़ां: झंझावात; मौजे-साहिल: तट की लहरें; सामां-ए-दफ़न: दफ़न की सामग्री; चंद: कुछ; ग़ाफ़िल: दिग्भ्रमित;
दहक़ां: कृषक गण; हासिल: अभिप्राप्ति; मोतबर: विश्वासपात्र; फज्र: उष:काल ।
आप महफ़िल लूट कर चलते बने
हम उन्हें हमदर्द समझे थे मगर
जान क़ातिल लूट कर चलते बने
हमसफ़र बन कर मिले थे जो हमें
जश्ने-मंज़िल लूट कर चलते बने
जंग तूफ़ां से लड़े जिनके लिए
मौजे-साहिल लूट कर चलते बने
सिर्फ़ सामां-ए-दफ़न था हाथ में
चंद ग़ाफ़िल लूट कर चलते बने
मिट गए दहक़ां फ़सल के वास्ते
शाह हासिल लूट कर चलते बने
मोतबर थे ख़्वाब यूं तो फज्र तक
आंख का तिल लूट कर चलते बने !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़िल: सभा, गोष्ठी; हमदर्द: दुःख में सहभागी; क़ातिल: हत्यारा; हमसफ़र: सहयात्री; जश्ने-मंज़िल: लक्ष्य-प्राप्ति का उत्सव, श्रेय; जंग: युद्ध; तूफ़ां: झंझावात; मौजे-साहिल: तट की लहरें; सामां-ए-दफ़न: दफ़न की सामग्री; चंद: कुछ; ग़ाफ़िल: दिग्भ्रमित;
दहक़ां: कृषक गण; हासिल: अभिप्राप्ति; मोतबर: विश्वासपात्र; फज्र: उष:काल ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें