बेरुख़ी भी रहे, दोस्ती भी रहे
होश के साथ कुछ बेख़ुदी भी रहे
ख़ूब है आपकी महफ़िलों का चलन
आरज़ू भी रहे, बे-बसी भी रहे
मश्विरा है यही साहिबे-हुस्न को
हो अना तो कहीं दिलकशी भी रहे
चश्मबाज़ी करें, रोकता कौन है
क़त्ल करते हुए आजिज़ी भी रहे
वो शबे-तार के ख़्वाब में आएं, तो
हौसला भी रहे, रौशनी भी रहे
है तरक़्क़ी मुकम्मल तभी मुल्क की
शाह के सोच में मुफ़लिसी भी रहे
हो सुजूदे-वफ़ा की यही इंतेहा
सर झुके यूं कि शाने-ख़ुदी भी रहे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेरुख़ी: उपेक्षा; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति; महफ़िलों: सभाओं; चलन: प्रथा; बे-बसी: विवशता; मश्विरा: परामर्श; साहिबे-हुस्न: सौंदर्य के स्वामी, सुंदर; अना: अहंकार; दिलकशी: मनमोहकता; चश्मबाज़ी: दृष्टि-प्रहार; क़त्ल: वध; आजिज़ी: विनम्रता; शबे-तार: अमावस्या; ख़्वाब: स्वप्न; हौसला: उत्साह; तरक़्क़ी: प्रगति, विकास; मुकम्मल: परिपूर्ण; मुल्क: देश; मुफ़लिसी: निर्धनता; सुजूदे-वफ़ा: आस्था व्यक्त करने के लिए प्रणिपात; इंतेहा: अतिरेक, सीमा; शाने-ख़ुदी: अस्मिता का सम्मान।
होश के साथ कुछ बेख़ुदी भी रहे
ख़ूब है आपकी महफ़िलों का चलन
आरज़ू भी रहे, बे-बसी भी रहे
मश्विरा है यही साहिबे-हुस्न को
हो अना तो कहीं दिलकशी भी रहे
चश्मबाज़ी करें, रोकता कौन है
क़त्ल करते हुए आजिज़ी भी रहे
वो शबे-तार के ख़्वाब में आएं, तो
हौसला भी रहे, रौशनी भी रहे
है तरक़्क़ी मुकम्मल तभी मुल्क की
शाह के सोच में मुफ़लिसी भी रहे
हो सुजूदे-वफ़ा की यही इंतेहा
सर झुके यूं कि शाने-ख़ुदी भी रहे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेरुख़ी: उपेक्षा; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति; महफ़िलों: सभाओं; चलन: प्रथा; बे-बसी: विवशता; मश्विरा: परामर्श; साहिबे-हुस्न: सौंदर्य के स्वामी, सुंदर; अना: अहंकार; दिलकशी: मनमोहकता; चश्मबाज़ी: दृष्टि-प्रहार; क़त्ल: वध; आजिज़ी: विनम्रता; शबे-तार: अमावस्या; ख़्वाब: स्वप्न; हौसला: उत्साह; तरक़्क़ी: प्रगति, विकास; मुकम्मल: परिपूर्ण; मुल्क: देश; मुफ़लिसी: निर्धनता; सुजूदे-वफ़ा: आस्था व्यक्त करने के लिए प्रणिपात; इंतेहा: अतिरेक, सीमा; शाने-ख़ुदी: अस्मिता का सम्मान।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें