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बुधवार, 3 सितंबर 2014

ज़िंदगी का यक़ीं...

दोस्तों  के  दिलों  में  रहम  आ  गया
या  हमारे  ज़ेह् न  में  भरम  आ  गया ?

ख़ुशनसीबी  कि  तुम  राह  में  मिल  गए
बदनसीबी  कि  दिल  में  वहम  आ  गया 

मैकदे  से  पिए  बिन  पलट  आए  हम
राह  में  एक   शैख़े -हरम   आ  गया

मुफ़लिसों  की  गली  में  दुआएं  मिलीं,
'हमज़ुबां  आ  गया',  'हमक़दम  आ  गया'

शाह  बदले,  न  बदला  रवैया  कभी
इक  नया  दौरे-ज़ुल्मो-सितम  आ  गया

ज़िंदगी  का  यक़ीं  तो  हमें  भी  न  था
मल्कुले-मौत  भी दम-ब-दम  आ  गया

देख  लीजे  हमारी  अज़ाँ   का  असर
तूर   पर  कारसाज़े-करम  आ  गया  !

                                                                    (2014)

                                                           -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: रहम: दया; ज़ेह् न: मस्तिष्क; भरम: भ्रम; ख़ुशनसीबी: सौभाग्य; बदनसीबी: दुर्भाग्य; वहम: शंका, संदेह; मैकदे: मदिरालय; शैख़े -हरम: का'बे में रहने वाला, धर्म-भीरु; मुफ़लिसों: वंचितों; हमज़ुबां: हमारी भाषा बोलने वाला; हमक़दम: साथ में चलने वाला; रवैया: रंग-ढंग; दौरे-ज़ुल्मो-सितम: अन्याय और अत्याचार का युग;  यक़ीं: विश्वास; मल्कुले-मौत: मृत्यु-दूत; दम-ब-दम: तुरत-फ़ुरत, तत्परता से; तूर: मिस्र के साम में एक पर्वत, मिथक के अनुसार इसकी चोटी पर हज़रत मूसा अ.स. के पुकारने पर ख़ुदा ने उन्हें अपनी झलक दिखाई थी; कारसाज़े-करम: कृपा-कर्त्ता, कृपा को संभव बनाने वाला।


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