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बुधवार, 24 सितंबर 2014

ग़ज़ब हैं हौसले...!

ये  आदाबे-मुहब्बत  है,  वो  जश्ने-बेवफ़ाई  है
इधर  हूरो-फ़रिश्ते  हैं,  उधर  बाक़ी  ख़ुदाई  है

सबक़  कहिए,  सज़ा  कहिए  कि  ईनामे-वफ़ा  कहिए
ख़ुदा  ने  छांट  कर  दिल  पर  मिरे  बिजली  गिराई  है

तलाशे-नूर  में  हमने  कई  दीवान  लिख  डाले
हमारा  जिस्म   सर-ता-पा  सुबूते-रौशनाई  है 

उम्मीदों  का  चटख़ना  क्या,  नज़र  का  डूबना  क्या  है
वही  ये बात  समझेंगे  जिन्होंने  चोट  खाई  है

ज़मीं  से  आसमां  तक  सिर्फ़  तेरी  ही  हुकूमत  हो
ग़ज़ब  हैं  हौसले  तेरे,  अजब  ये  रहनुमाई  है  !

किसी  का  हक़  नहीं  छीना,  किसी  का  दिल  नहीं  तोड़ा
समझ  कर,  सोच  कर  कहिए  कि  हममें  क्या  बुराई  है ?

हमारा  नाम  सुन  कर  ही  हुकूमत  होश  खो  देगी
कि  हमने  ये  बग़ावत  की  शम्'अ  क्यूं  कर  जलाई  है

किसी  को  हक़  नहीं  है,  मैकदे  में  वाज़  करने  का
ख़ुदा  ने  क्या  किसी  से  पूछ  कर  दुनिया  बनाई  है ?!

                                                                                       (2014)

                                                                              -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: आदाबे-मुहब्बत: प्रेम का शिष्टाचार; जश्ने-बेवफ़ाई: छल-कपट का उत्सव; हूरो-फ़रिश्ते: अप्सराएं एवं देवदूत; बाक़ी : शेष; ख़ुदाई: संसार, सांसारिकता; सबक़: शिक्षा; ईनामे-वफ़ा: आस्था का पुरस्कार; तलाशे-नूर: प्रकाश की खोज; दीवान: काव्य-संग्रह; जिस्म: शरीर; सर-ता-पा: सिर से पैर तक; सुबूते-रौशनाई: शब्दशः, मसि या अंधकार का प्रमाण, भावार्थ, प्रकाश का प्रमाण; हौसले: उत्साह; अजब: विचित्र; रहनुमाई: नेतृत्व; हक़: अधिकार; हुकूमत: शासन, सरकार; बग़ावत: विद्रोह; शम्'अ: ज्योति; मैकदे: मदिरालय; वाज़: प्रवचन। 


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