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रविवार, 29 दिसंबर 2013

न मुस्कुराओ गुनाह करके !

किसी  के  दिल  को  तबाह  करके
न     मुस्कुराओ      गुनाह  करके

चलो  यह  माना   जफ़ा  नहीं  की
कहो      ख़ुदा  को    गवाह  करके

हमें   फ़लक  पर   बिठा  दिया  है
सहर    ने     ज़ेरे-पनाह     करके

न  क़ाफ़िया   न  बहर  मुकम्मल
मिलेगा   क्या    वाह  वाह  करके

किसी  पे  मिटना   ख़ता  नहीं  है
चलो  न    नीची   निगाह   करके

किया  है   दुश्मन  को  आश्ना  गर
दिखाइए  अब     निबाह     करके

ख़ुदा  को  क्या  मुंह  दिखाएंगे  वो:
जिए  जो  रू:  को  सियाह  करके  !

                                              ( 2013 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: जफ़ा: बेईमानी; फ़लक: आकाश; सहर: उषः काल; ज़ेरे-पनाह: शरणागत; क़ाफ़िया : शे'र की दूसरी पंक्ति में  अंतिम से पूर्व का शब्द; बहर: छंद; मुकम्मल: परिपूर्ण; ख़ता : दोष, अपराध; आश्ना: मित्र,साथी; गर: यदि; रू:: आत्मा; सियाह: काला।

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