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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

ग़ालिब …ग़ालिब … सिर्फ़ ग़ालिब !

उर्दू शायरी के पीराने-पीर, अज़ीम-तरीन शाहकार हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब ( 27 दिस. 1797- 15 फ़र.1869 ) का आज 216 वां यौमे-पैदाइश है। उनके लिए ख़ेराजे-अक़ीदत के तौर पर उन्हीं की एक बेहद मक़बूल ग़ज़ल आज आपके लिए पेश है, मुलाहिज़ा फ़रमाएं:

यह  न  थी  हमारी  क़िस्मत  कि  विसाल-ए-यार  होता
अगर  और  जीते  रहते,  यही  इंतिज़ार  होता

तिरे  वा'दे  पर  जिए  हम  तो  यह  जान,  झूठ  जाना
कि  ख़ुशी  से  मर  न  जाते,  अगर  ए'तबार  होता

तिरी  नाज़ुकी  से  जाना  कि  बंधा  था  'अहद  बोदा
कभी  तू  न  तोड़  सकता,  अगर  उस्तुवार  होता

कोई  मेरे  दिल  से  पूछे,  तिरे  तीरे-नीमकश  को
यह  ख़लिश  कहाँ  से  होती,  जो  जिगर  के  पार  होता

यह  कहाँ  की  दोस्ती  है, कि  बने  हैं  दोस्त, नासेह
कोई  चार: साज़  होता,  कोई  ग़म-गुसार  होता

रग-ए-संग  से  टपकता,  वह  लहू,  कि  फिर  न  थमता
जिसे  ग़म  समझ  रहे  हो,  यह  अगर  शरार  होता

ग़म  अगरचे:  जाँ गुसिल  है,  प'  कहाँ  बचें,  कि  दिल  है
ग़म-ए-इश्क़  गर  न  होता,  ग़म-ए-रोज़गार  होता

कहूँ  किससे  मैं  कि  क्या  है,  शबे-ग़म  बुरी  बला  है
मुझे  क्या  बुरा  था  मरना,  अगर  एक  बार  होता

हुए  मरके  हम  जो  रुस्वा,  हुए  क्यों  न  ग़र्क़े-दरिया
न  कभी  जनाज़:  उठता  न  कहीं  मज़ार  होता

उसे  कौन  देख  सकता,  कि  यगान:  है  वह  यकता
जो  दुई  की  बू  भी  होती,  तो  कहीं  दुचार  होता

यह  मसाइल-ए-तसव्वुफ़,  यह  तिरा  बयान,  ग़ालिब
तुझे  हम  वली  समझते,  जो  न  बाद: ख़्वार  होता

                                                                     -मिर्ज़ा  असद उल्लाह  ख़ां  'ग़ालिब'

शब्दार्थ: विसाल-ए-यार: पिया-मिलन; वा'दे: वचन; ए'तबार: विश्वास; 'अहद: प्रतिज्ञा, वचन; बोदा: कच्चा; उस्तुवार: दृढ़, पुष्ट; तीरे-नीमकश: आधा खिंचा हुआ तीर; ख़लिश: खटक, चुभन; नासेह: उपदेशक; चार: साज़: उपचारक; ग़म-गुसार: हितैषी, 
दुःख का सहभागी; रग-ए-संग: पत्थर की नस; शरार: चिंगारी; जाँ गुसिल: जानलेवा, प्राणघातक; ग़म-ए-इश्क़: प्रेम का दुःख; ग़म-ए-रोज़गार: आजीविका का दुःख;   शबे-ग़म: दुःख की निशा; रुस्वा: अपमानित; ग़र्क़े-दरिया: नदी या पानी में डूबा; जनाज़: : अर्थी; मज़ार: समाधि; यगान: : अनुपम; यकता: अद्वितीय; दुई: द्वैत; दुचार: दो-चार, आमने-सामने; मसाइल-ए-तसव्वुफ़: भक्ति की समस्याएं; बयान: वर्णन; वली: ऋषि, ज्ञानी; बाद: ख़्वार: मद्यप।

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