तू वली है तुझसे छुपा नहीं
मेरी ज़ात तुझसे जुदा नहीं
ऐ हवाओ मेरी मदद करो
मेरे पास उनका पता नहीं
मुझे उस गुनह की न दे सज़ा
जो तमाम उम्र किया नहीं
तू मुझे नज़र से उतार दे
जो मेरी बहर में वफ़ा नहीं
किसी बुत को अपना ख़ुदा कहूँ
ये: फरेब मुझसे हुआ नहीं
मुझे कब क़ुबूल थी ज़िन्दगी
मेरा उज्र तूने सुना नहीं।
(2012)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वली: ज्ञानी,संत; ज़ात : व्यक्तित्व; बहर : छंद ; उज्र : आपत्ति
मेरी ज़ात तुझसे जुदा नहीं
ऐ हवाओ मेरी मदद करो
मेरे पास उनका पता नहीं
मुझे उस गुनह की न दे सज़ा
जो तमाम उम्र किया नहीं
तू मुझे नज़र से उतार दे
जो मेरी बहर में वफ़ा नहीं
किसी बुत को अपना ख़ुदा कहूँ
ये: फरेब मुझसे हुआ नहीं
मुझे कब क़ुबूल थी ज़िन्दगी
मेरा उज्र तूने सुना नहीं।
(2012)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: वली: ज्ञानी,संत; ज़ात : व्यक्तित्व; बहर : छंद ; उज्र : आपत्ति
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