जो मिला वो: अगर क़रीब नहीं
दिल गुनहगार है, नसीब नहीं
एक उम्मीद है सबा-ए-सुख़न
मुफ़लिसों के भरम अजीब नहीं
ग़र्द- आलूद: पैरहन पे न जा
साहिब-ए-दिल कभी ग़रीब नहीं
बात कहते हैं हक़परस्ती की
हम शहंशाह के अदीब नहीं
तू हसीं है तो तख़्त-ओ-ताज संभाल
तेरा विरसा मेरा सलीब नहीं।
(2011)
-सुरेश स्वप्निल
दिल गुनहगार है, नसीब नहीं
एक उम्मीद है सबा-ए-सुख़न
मुफ़लिसों के भरम अजीब नहीं
ग़र्द- आलूद: पैरहन पे न जा
साहिब-ए-दिल कभी ग़रीब नहीं
बात कहते हैं हक़परस्ती की
हम शहंशाह के अदीब नहीं
तू हसीं है तो तख़्त-ओ-ताज संभाल
तेरा विरसा मेरा सलीब नहीं।
(2011)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सबा-ए-सुखन : साहित्य-समीर ग़र्द-आलूद: : धूल-धूसरित पैरहन : वस्त्र हकपरस्ती :न्याय-
प्रियता विरसा : उत्तराधिकार
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