अश्कों के दायरे में तेरा नाम आ गया
यूँ टूट के रोये हैं के: आराम आ गया
कल पहली मर्तबा तेरे दर से गुज़र हुआ
हैरत है, हम पे इश्क़ का इल्ज़ाम आ गया
कह के भी आ सके न मेरे ख़्वाब में सनम
कल शब उन्हें ज़रूर कोई काम आ गया
तुझसे मिला रहे थे नज़र जब हुए फ़ना
देखा भी न आग़ाज़ के: अंजाम आ गया
दावत थी हमें मुल्क-ए-अदम से इशा के बाद
अफ़सोस वो: मेहमान सर-ए-शाम आ गया।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
यूँ टूट के रोये हैं के: आराम आ गया
कल पहली मर्तबा तेरे दर से गुज़र हुआ
हैरत है, हम पे इश्क़ का इल्ज़ाम आ गया
कह के भी आ सके न मेरे ख़्वाब में सनम
कल शब उन्हें ज़रूर कोई काम आ गया
तुझसे मिला रहे थे नज़र जब हुए फ़ना
देखा भी न आग़ाज़ के: अंजाम आ गया
दावत थी हमें मुल्क-ए-अदम से इशा के बाद
अफ़सोस वो: मेहमान सर-ए-शाम आ गया।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
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