कोई फ़रेब नया बेवफ़ा करे है उन्हें
हमारे दिल से दम-ब-दम जुदा करे है उन्हें
तमाम ज़ायरीं उनकी दरूद पढ़ते हैं
हमारा इश्क़ हबीब-ए-ख़ुदा करे है उन्हें
कहीं लिखा है के: न तोड़ेंगे वो: हिजाब कभी
यही ग़ुरूर मेरा मरतबा करे है उन्हें
हुनर है ख़ूब सर-ए-बज़्म निगहसाज़ी भी
ये: रंग-ए-सोज़ सबसे अलहदा करे है उन्हें
जो तहे-दिल से निभाते हैं रस्मे-उन्सो-ख़ुलूस
रूह-ए-ममनून शुक्रिया कहा करे है उन्हें।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
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