ख़ुदा से मिलो तो वफ़ा मांग लेना
हमारी तरफ़ से दुआ मांग लेना
शब-ए-वस्ल ख़ुद एक तोहफ़ा है यूँ तो
हक़-ए-इश्क़ का मरतबा मांग लेना
वो: मुन्सिफ़ है सबकी तरफ़ देखता है
सितम तो करो प' रज़ा मांग लेना
तग़ाफ़ुल की जायज़ वजह जो न हो तो
हमीं से कोई मुद्दआ मांग लेना
सर-ए-बज़्म ज़ाहिर न हो नब्ज़-ए-दिल
अकेले में हमसे दवा मांग लेना
कठिन है डगर उसके पनघट की जोगी
तसव्वुफ़ का इक सिलसिला मांग लेना
कभी हज को आओ वहीं घर है अपना
इमाम - ए - सदर से पता मांग लेना
(2011)
-सुरेश स्वप्निल
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