अपनी बेताबियों से डरते हैं
उनकी ग़ुस्ताखियों से डरते हैं
बुत- ए- ग़ुरूर बन गए रहबर
और फिर बिजलियों से डरते हैं
रश्क़ किस-किस से कीजिए साहब
अपनी रुस्वाइयों से डरते हैं
रिज्क़ तक लुट रहा है राहों पे
ऐसी आज़ादियों से डरते हैं
दाल छोड़ें के: बेच दें बच्चे
लोग मंहगाइयों से डरते हैं
कब - कहाँ - कौन जला दे बस्ती
शहर दंगाइयों से डरते हैं
तू हिमाला हुआ है जिस दिन से
तेरी ऊँचाइयों से डरते हैं।
(2009)
-सुरेश स्वप्निल
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