क़त्ल करके हसीं बहारों का
तन गया सर रसूख़दारों का
लाशे-अत्फ़ाल रौंद कर ख़ुश हैं
तुफ़ ! ये: किरदार ताजदारों का
मुंह छुपा लें कि सर कटा डालें
है पसोपेश शर्मसारों का
है हमारी कमी कि क़ायम है
दबदबा ज़ुल्म के इदारों का
जल न जाए ज़मीन जन्नत की
ख़ूं बहुत बह चुका चिनारों का
जब्र की इंतिहा अगर होगी
सब्र चुक जाएगा क़तारों का
वो: फ़रिश्तों के हुस्न में गुम हैं
है हमें पास बेक़रारों का
इश्क़ ही आख़िरी मुदावा है
रूह पर पड़ गई दरारों का !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़त्ल: हत्या; हसीं: सुंदर; बहारों: बसंतों; सर: शीश; रसूख़दारों: प्रभावशाली लोगों; लाशे-अत्फ़ाल: शिशुओं के शव; तुफ़: धिक्कार है; किरदार: चरित्र; ताजदारों: मुकुटधारियों, सत्ताधीशों; पसोपेश: दुविधा; शर्मसारों: लज्जित समूहों; क़ायम: शेष, स्थापित; दबदबा: प्रभुत्व; :ज़ुल्म: अत्याचार; इदारों: संस्थानों; जन्नत: स्वर्ग; चिनारों: कश्मीर घाटी में पाया जाने वाला एक सुंदर वृक्ष; जब्र: अन्याय, बल का अनुचित प्रयोग; इंतिहा: अति; सब्र: धैर्य; क़तारों: पंक्तियों; फ़रिश्तों: देवदूतों (के समान व्यक्तियों); हुस्न: सौंदर्य; गुम: खोए हुए; पास: चिंता, पक्षधरता, ध्यान; बेक़रारों: व्यग्र व्यक्तियों; इश्क़: असीम प्रेम; मुदावा: उपचार; रूह: आत्मा; दरारों: संधियों।
तन गया सर रसूख़दारों का
लाशे-अत्फ़ाल रौंद कर ख़ुश हैं
तुफ़ ! ये: किरदार ताजदारों का
मुंह छुपा लें कि सर कटा डालें
है पसोपेश शर्मसारों का
है हमारी कमी कि क़ायम है
दबदबा ज़ुल्म के इदारों का
जल न जाए ज़मीन जन्नत की
ख़ूं बहुत बह चुका चिनारों का
जब्र की इंतिहा अगर होगी
सब्र चुक जाएगा क़तारों का
वो: फ़रिश्तों के हुस्न में गुम हैं
है हमें पास बेक़रारों का
इश्क़ ही आख़िरी मुदावा है
रूह पर पड़ गई दरारों का !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़त्ल: हत्या; हसीं: सुंदर; बहारों: बसंतों; सर: शीश; रसूख़दारों: प्रभावशाली लोगों; लाशे-अत्फ़ाल: शिशुओं के शव; तुफ़: धिक्कार है; किरदार: चरित्र; ताजदारों: मुकुटधारियों, सत्ताधीशों; पसोपेश: दुविधा; शर्मसारों: लज्जित समूहों; क़ायम: शेष, स्थापित; दबदबा: प्रभुत्व; :ज़ुल्म: अत्याचार; इदारों: संस्थानों; जन्नत: स्वर्ग; चिनारों: कश्मीर घाटी में पाया जाने वाला एक सुंदर वृक्ष; जब्र: अन्याय, बल का अनुचित प्रयोग; इंतिहा: अति; सब्र: धैर्य; क़तारों: पंक्तियों; फ़रिश्तों: देवदूतों (के समान व्यक्तियों); हुस्न: सौंदर्य; गुम: खोए हुए; पास: चिंता, पक्षधरता, ध्यान; बेक़रारों: व्यग्र व्यक्तियों; इश्क़: असीम प्रेम; मुदावा: उपचार; रूह: आत्मा; दरारों: संधियों।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-08-2017) को "सुख के सूरज से सजी धरा" (चर्चा अंक 2700) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह क्या बात है (Y)
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