शौक़ तो उन्हें भी है पास में बिठाने का
जो हुनर नहीं रखते दूरियां मिटाने का
रोज़ रोज़ क्यूं हम भी आपसे पशेमां हों
एक दिन मुक़र्रर हो रूठने-मनाने का
आपकी सफ़ाई से मुत्मईं नहीं हैं हम
राज़ कोई तो होगा आपके न आने का
कस्रते-सियासत हैं दीनो-धर्म के झगड़े
ख़त्म सिलसिला कीजे बस्तियां जलाने का
ख़ुदकुशी के सौ सामां शाह ने सजा डाले
फ़र्ज़ अब हमारा है मुल्क को बचाने का
क्या ख़बर कि दीवाने कब-किसे ख़ुदा कर लें
मर्ज़ है मुरीदों को जूतियां उठाने का
जानते नहीं क्या हम आपकी अदाओं को
याद बस बहाना है अर्श पर बुलाने का !
(2017)
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल, पशेमां: लज्जित; मुक़र्रर: निश्चित; सफ़ाई: स्पष्टीकरण; मुत्मईं: संतुष्ट; :रहस्य; कस्रते-सियासत: राजनीतिक उठा-पटक; सिलसिला: क्रम, चलन; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; सामां: सामग्रियां; फ़र्ज़: ;कर्त्तव्य; मुल्क: देश; दीवाने: उन्मत्त जन; मर्ज़: रोग; मुरीदों: भक्त जन; अदाओं: भंगिमाओं; अर्श: आकाश।
जो हुनर नहीं रखते दूरियां मिटाने का
रोज़ रोज़ क्यूं हम भी आपसे पशेमां हों
एक दिन मुक़र्रर हो रूठने-मनाने का
आपकी सफ़ाई से मुत्मईं नहीं हैं हम
राज़ कोई तो होगा आपके न आने का
कस्रते-सियासत हैं दीनो-धर्म के झगड़े
ख़त्म सिलसिला कीजे बस्तियां जलाने का
ख़ुदकुशी के सौ सामां शाह ने सजा डाले
फ़र्ज़ अब हमारा है मुल्क को बचाने का
क्या ख़बर कि दीवाने कब-किसे ख़ुदा कर लें
मर्ज़ है मुरीदों को जूतियां उठाने का
जानते नहीं क्या हम आपकी अदाओं को
याद बस बहाना है अर्श पर बुलाने का !
(2017)
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल, पशेमां: लज्जित; मुक़र्रर: निश्चित; सफ़ाई: स्पष्टीकरण; मुत्मईं: संतुष्ट; :रहस्य; कस्रते-सियासत: राजनीतिक उठा-पटक; सिलसिला: क्रम, चलन; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; सामां: सामग्रियां; फ़र्ज़: ;कर्त्तव्य; मुल्क: देश; दीवाने: उन्मत्त जन; मर्ज़: रोग; मुरीदों: भक्त जन; अदाओं: भंगिमाओं; अर्श: आकाश।
sundar rachna ...badhai
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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