सल्तनत के ज़वाल की आहें
ज़र्द जाहो-जलाल की आहें
मांगती हैं हिसाब वहशत का
हर सुलगते सवाल की आहें
लफ़्ज़ शायद बयां न कर पाएं
नर्मो-नाज़ुक़ ख़्याल की आहें
पढ़ रही हैं मिज़ाज यारों का
मुफ़्लिसे-ख़स्त:हाल की आहें
आप सहते तो याद भी रखते
हिज्र के माहो-साल की आहें
क़ैदे-सफ़्हात में तड़पती हैं
दर्दे-दिल के अफ़्आल की आहें
काश ! हमदर्द कोई गिन पाता
इस दिले-बेमिसाल की आहें !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सल्तनत : राज; ज़वाल: पतन; ज़र्द: निस्तेज; जाहो-जलाल: तेज-प्रताप; वहशत: भयानक व्यवहार; लफ़्ज़; शब्द; बयां; व्यक्त; नर्मो-नाज़ुक़; कोमल एवं मृदुल; मिज़ाज; तबीयत; हिज्र: वियोग; माहो-साल; महीने एवं वर्ष; क़ैदे-सफ़्आत : पृष्ठों में बंदी; अफ़्आल: रचना-संग्रह; हमदर्द; पीड़ा में सहभागी, सहानुभूतिशील; दिले-बेमिसाल; अप्रतिम हृदय ।
ज़र्द जाहो-जलाल की आहें
मांगती हैं हिसाब वहशत का
हर सुलगते सवाल की आहें
लफ़्ज़ शायद बयां न कर पाएं
नर्मो-नाज़ुक़ ख़्याल की आहें
पढ़ रही हैं मिज़ाज यारों का
मुफ़्लिसे-ख़स्त:हाल की आहें
आप सहते तो याद भी रखते
हिज्र के माहो-साल की आहें
क़ैदे-सफ़्हात में तड़पती हैं
दर्दे-दिल के अफ़्आल की आहें
काश ! हमदर्द कोई गिन पाता
इस दिले-बेमिसाल की आहें !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सल्तनत : राज; ज़वाल: पतन; ज़र्द: निस्तेज; जाहो-जलाल: तेज-प्रताप; वहशत: भयानक व्यवहार; लफ़्ज़; शब्द; बयां; व्यक्त; नर्मो-नाज़ुक़; कोमल एवं मृदुल; मिज़ाज; तबीयत; हिज्र: वियोग; माहो-साल; महीने एवं वर्ष; क़ैदे-सफ़्आत : पृष्ठों में बंदी; अफ़्आल: रचना-संग्रह; हमदर्द; पीड़ा में सहभागी, सहानुभूतिशील; दिले-बेमिसाल; अप्रतिम हृदय ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 10 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
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