कांधे पे सर रखा है अभी तक यही बहुत
ज़िंदा हैं इस हराम सदी तक यही बहुत
जी चाहता है आग लगा दें उमीद को
पहुंचे न बात आगज़नी तक यही बहुत
सहरा तलाशता है समंदर यहां-वहां
मिल जाए कहीं राह नदी तक यही बहुत
इज़्हारे इश्क़ यूं भी मेरा मुद्द'आ नहीं
आए हैं आप दिल की गली तक यही बहुत
सर है हमारे पास तो दिल है खुला हुआ
फेंकें न कोई तीर ख़ुदी तक यही बहुत
कर ले हज़ार तंज़ मेरे तंग हाल पर
उट्ठे नज़र न मोतबरी तक यही बहुत
का'बे के आसपास बहुत धुंद ही सही
इक राह है फ़राग़दिली तक यही बहुत !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हराम: अपवित्र; सदी : शताब्दी; उमीद : आशा; आगज़नी : अग्निकांड; सहरा : मरुस्थल;समंदर:समुद्र;
इज़्हारे इश्क़: प्रेम निवेदन; मुद्द'आ: विषय; ख़ुदी : स्वाभिमान; तंज़ : व्यंग्य; तंग हाल: दयनीय स्थिति, मोतबरी : विश्वसनीयता; का'बा : इस्लाम का पवित्रतम धार्मिक स्थल; धुंद : ढूंढ; फ़राग़दिली : आत्मिक संतोष।
ज़िंदा हैं इस हराम सदी तक यही बहुत
जी चाहता है आग लगा दें उमीद को
पहुंचे न बात आगज़नी तक यही बहुत
सहरा तलाशता है समंदर यहां-वहां
मिल जाए कहीं राह नदी तक यही बहुत
इज़्हारे इश्क़ यूं भी मेरा मुद्द'आ नहीं
आए हैं आप दिल की गली तक यही बहुत
सर है हमारे पास तो दिल है खुला हुआ
फेंकें न कोई तीर ख़ुदी तक यही बहुत
कर ले हज़ार तंज़ मेरे तंग हाल पर
उट्ठे नज़र न मोतबरी तक यही बहुत
का'बे के आसपास बहुत धुंद ही सही
इक राह है फ़राग़दिली तक यही बहुत !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हराम: अपवित्र; सदी : शताब्दी; उमीद : आशा; आगज़नी : अग्निकांड; सहरा : मरुस्थल;समंदर:समुद्र;
इज़्हारे इश्क़: प्रेम निवेदन; मुद्द'आ: विषय; ख़ुदी : स्वाभिमान; तंज़ : व्यंग्य; तंग हाल: दयनीय स्थिति, मोतबरी : विश्वसनीयता; का'बा : इस्लाम का पवित्रतम धार्मिक स्थल; धुंद : ढूंढ; फ़राग़दिली : आत्मिक संतोष।
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