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सोमवार, 23 मई 2016

...जो नवाज़े गए

हो  जहां  ज़िंदगी  तेग़  की  धार  पर
जब्र  होने  न  दें  अपने  किरदार  पर

आईना  भी  कहां  तक  मज़म्मत  करे
दाग़  ही  दाग़  हैं  जिस्मे-सरकार  पर

नाम  जम्हूरियत  का  बदल  दीजिए
हो  अक़ीदा  अगर  रस्मे-बाज़ार  पर

आप  शायद  समझ  ही  न  पाएं  कभी
लोग  ख़ुश  क्यूं  हुए  आपकी  हार  पर

मज्लिसे-शाह  में  जो  नवाज़े  गए
अब  सफ़ाई  न  दें  अपनी  दस्तार  पर

रोज़  मिलना  ज़रूरी  नहीं  ना  सही
आइए  तो  कभी  तीज-त्यौहार  पर

' तूर  की  राह  रौशन  हमीं  ने  रखी
हक़  हमें  क्यूं  न  हो  आपके  प्यार  पर ?

                                                                                          (2016)

                                                                                  -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: तेग़ : कृपाण ; जब्र : बल-प्रयोग ; किरदार : चरित्र ; मज़म्मत : निंदा, आलोचना ; जिस्मे-सरकार : शासन का शरीर, शासन-तंत्र ; जम्हूरियत : लोकतंत्र ; अक़ीदा : आस्था ; रस्मे-बाज़ार : व्यापार की प्रथा ; मज्लिसे-शाह : राजसभा ; राजा की सभा ; नवाज़े : पुरस्कृत , सम्मानित ; दस्तार : शिरो-वस्त्र, प्रतिष्ठा ; तूर : कोहे-तूर, अरब का एक मिथकीय पर्वत, जहां हज़रत मूसा अ.स. को ख़ुदा की झलक दिखाई दी थी ; रौशन : प्रकाशित ; हक़ : अधिकार ।



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