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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

बग़ावत वक़्त से

सच  बताएंगे  भला  हुक्काम  क्या
तय  नहीं  हम  पर  रखें  इल्ज़ाम  क्या

जान  कर  की  है  बग़ावत  वक़्त  से
इब्तिदाए-जंग  क्या  अंजाम  क्या

दांव  पर  फ़तवे  नहीं  अब  क़ौम  है
फिर  पढ़ें  मुफ़्ती  कि  है  इस्लाम  क्या

क़द्रदां  को  हर  ख़ज़ाना  हेच  है
बोलिए  बादे-सबा  के  दाम  क्या

आप  मेहमां  हो  गए  सब  मिल  गया
दिलनवाज़ी  से  बड़ा  ईनाम  क्या

एक  मंज़िल  एक  मक़सद  एक  रू:
इश्क़  है  तो  गर्दिशे-अय्याम  क्या

और  क्या  तोहमत  लगाएगा  ख़ुदा
शायरों  का  नाम  क्या  बदनाम  क्या  !

                                                                                (2016)

                                                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : हुक्काम : शासक वर्ग, अधिकारी गण ; इल्ज़ाम : आरोप ; बग़ावत : विद्रोह ; इब्तिदाए-जंग : युद्ध का आरंभ ; अंजाम : परिणति ; फ़तवे : धार्मिक निर्देश ; क़ौम : धर्मानुयायी ; मुफ़्ती : धार्मिक निर्देश देने वाले ; क़द्रदां : मूल्य समझने वाले, पारखी ; ख़ज़ाना : कोश ;  हेच : तुच्छ , अपर्याप्त ; बादे-सबा : प्रभात समीर ; दाम : मूल्य ; दिलनवाजी : दूसरे के मन की मानना, मन रखना ; ईनाम : पुरस्कार ; मंज़िल : लक्ष्य ; मक़सद : उद्देश्य ; रू: : आत्मा ; गर्दिशे-अय्याम: काल-चक्र, समय का भटकाव ; तोहमत : कलंक ।

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