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मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

...तो ना बुलाएं

दीजिए  दिल  से  दुआएं  अब  हमें
मौत    देती  है   सदाएं    अब  हमें

शह्र  की  रंगीनियां  बस  हो  चुकीं
याद  करती  हैं  ख़लाएं  अब  हमें

उम्र  भर  जो   रौशनी   देती  रहीं
भूल  बैठीं  वो  शुआएं   अब  हमें

जी  जलाने  को  बहारें  हैं  बहुत
चैन  देती  हैं  ख़िज़ाएं  अब  हमें

ज़र्र:  ज़र्र:  बंट  चुके  हैं  उन्स  में
दोस्त  क्यूं  कर  आज़माएं  अब  हमें

बदगुमानी  दुश्मनी  रुस्वाइयां
दीजिए  क्या  क्या  सज़ाएं  अब  हमें

नफ़्स  घुटती  जा  रही  है  दम  ब  दम
देखना  है  देख  जाएं  अब  हमें

गर  मकां  ख़ाली  नहीं  है  अर्श  पर
बे-वजह  तो  ना  बुलाएं  अब  हमें  !'

                                                                         (2015)

                                                                    -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: दुआएं: शुभ कामनाएं; सदाएं: आमंत्रण; शह्र: शहर, नगर; ख़लाएं: एकांत, निर्जन स्थान; रौशनी: प्रकाश; शुआएं: किरणें; बहारें: बसंत; चैन: संतोष; ख़िज़ाएं: पतझड़: ज़र्र:  ज़र्र:: कण कण; उन्स: स्नेह; क्यूं  कर: किस कारण; बदगुमानी: अनुचित धारणा; दुश्मनी: शत्रुता; रुस्वाइयां: अपमान; नफ़्स: सांस; दम  ब  दम: प्रति पल; गर: यदि; मकां: आवास; अर्श: आकाश, परलोक; बे-वजह: अकारण।  

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