वक़्त की ठोकरों ने सताया बहुत
पर हमें यह सफ़र रास आया बहुत
दुश्मनों ने हमेशा यक़ीं कर लिया
दोस्तों ने मगर आज़माया बहुत
थी हमारी कमी यह कि तन्हा जिए
इश्क़ तो आपने भी निभाया बहुत
नफ़रतों की सियाही न कम हो सकी
रौशनी के लिए घर जलाया बहुत
सालहा साल हम याद आते रहे
गो हमें आशिक़ों ने भुलाया बहुत
कर सका ख़ुल्द पर वो न राज़ी हमें
ज़ोर हम पर ख़ुदा ने लगाया बहुत
जी किया तूर पर जल्व: गर हो गए
हां हमें तीरगी ने डराया बहुत !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: यक़ीं: विश्वास; तन्हा: अकेले; नफ़रतों: घृणाओं; सियाही:कालिमा, अंधकार; सालहा साल: वर्ष प्रति वर्ष; ख़ुल्द:स्वर्ग; राज़ी:सहमत; ज़ोर:बल; तूर: एक मिथकीय पर्वत; जल्व: गर:प्रकट; तीरगी:अंधकार।
पर हमें यह सफ़र रास आया बहुत
दुश्मनों ने हमेशा यक़ीं कर लिया
दोस्तों ने मगर आज़माया बहुत
थी हमारी कमी यह कि तन्हा जिए
इश्क़ तो आपने भी निभाया बहुत
नफ़रतों की सियाही न कम हो सकी
रौशनी के लिए घर जलाया बहुत
सालहा साल हम याद आते रहे
गो हमें आशिक़ों ने भुलाया बहुत
कर सका ख़ुल्द पर वो न राज़ी हमें
ज़ोर हम पर ख़ुदा ने लगाया बहुत
जी किया तूर पर जल्व: गर हो गए
हां हमें तीरगी ने डराया बहुत !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: यक़ीं: विश्वास; तन्हा: अकेले; नफ़रतों: घृणाओं; सियाही:कालिमा, अंधकार; सालहा साल: वर्ष प्रति वर्ष; ख़ुल्द:स्वर्ग; राज़ी:सहमत; ज़ोर:बल; तूर: एक मिथकीय पर्वत; जल्व: गर:प्रकट; तीरगी:अंधकार।
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