सर उठा कर गुनाह करते हैं
शाह दुनिया तबाह करते हैं
आप जज़्बात रोक लेते हैं
बाद में आह-आह करते हैं
इश्क़ में नूर चाहने वाले
चांदनी को गवाह करते हैं
इश्क़ हो, जंग हो, बग़ावत हो
जुर्म हम बेपनाह करते हैं
दुश्मनों ने नहीं किया जो कुछ
काम वो ख़ैरख़्वाह करते हैं
है अक़ीदत जिन्हें मुहब्बत में
सब लुटा कर निबाह करते हैं
क़र्ज़ में दब चुके जवां दहक़ां
क़ब्र को ख़्वाबगाह करते हैं
वो दुआ मांग लें जहां रुक कर
हम वहीं ख़ानकाह करते हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनाह : अपराध; तबाह: उद्ध्वस्त; जज़्बात : भावनाएं; नूर: प्रकाश, उज्ज्वलता ; गवाह:साक्षी; जंग: युद्ध; बग़ावत:विद्रोह; जुर्म:अपराध; बेपनाह:असीम, अत्यधिक; ख़ैरख़्वाह:शुभचिंतक; अक़ीदत : आस्था; क़र्ज़ : ऋण ; जवां दहक़ां : युवा कृषक; क़ब्र: समाधि; ख़्वाबगाह : अंतिम शयन-स्थल, स्वप्नागार; दुआ : शुभेच्छा; मान्यता; ख़ानकाह : पीरों का स्मरण करने, मन्नत करने का स्थान, मज़ार।
शाह दुनिया तबाह करते हैं
आप जज़्बात रोक लेते हैं
बाद में आह-आह करते हैं
इश्क़ में नूर चाहने वाले
चांदनी को गवाह करते हैं
इश्क़ हो, जंग हो, बग़ावत हो
जुर्म हम बेपनाह करते हैं
दुश्मनों ने नहीं किया जो कुछ
काम वो ख़ैरख़्वाह करते हैं
है अक़ीदत जिन्हें मुहब्बत में
सब लुटा कर निबाह करते हैं
क़र्ज़ में दब चुके जवां दहक़ां
क़ब्र को ख़्वाबगाह करते हैं
वो दुआ मांग लें जहां रुक कर
हम वहीं ख़ानकाह करते हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनाह : अपराध; तबाह: उद्ध्वस्त; जज़्बात : भावनाएं; नूर: प्रकाश, उज्ज्वलता ; गवाह:साक्षी; जंग: युद्ध; बग़ावत:विद्रोह; जुर्म:अपराध; बेपनाह:असीम, अत्यधिक; ख़ैरख़्वाह:शुभचिंतक; अक़ीदत : आस्था; क़र्ज़ : ऋण ; जवां दहक़ां : युवा कृषक; क़ब्र: समाधि; ख़्वाबगाह : अंतिम शयन-स्थल, स्वप्नागार; दुआ : शुभेच्छा; मान्यता; ख़ानकाह : पीरों का स्मरण करने, मन्नत करने का स्थान, मज़ार।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंकब्र मेन दाब चुके जवान देहका
जवाब देंहटाएंकब्र को ख्वाबगाह करते है ...बहुत खूब।