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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

सख़्त ख़ाल हो, तो...

कोई  बेहतर  ख़्याल  हो  तो  लाओ
ज़िंदगी  का   सवाल  हो  तो  लाओ

शाह  है  मुल्क  बेचने  की  धुन  में
कोई क़ाबिल  दलाल हो  तो  लाओ

मुर्ग़ियां  खा के थक चुके हैं  हम भी
माश  या  मूंग   दाल  हो  तो  लाओ

शायरों   को   'ख़ुदा'   रक़्म   बांटेगा
आप भी  सख़्त ख़ाल  हो  तो  लाओ

दाल  दिल्ली  में  हो  गई  है  सस्ती
हाथ  में  नक़्द  माल  हो  तो  लाओ

है  ज़रूरत  तमाम  चीज़ों  की  अब
नौकरी  फिर  बहाल  हो  तो  लाओ

'सर झुका कर  नियाज़  ही  ले आते'
आपको  यह  मलाल  हो  तो  लाओ !

                                                                    (2015)

                                                              -सुरेश  स्वप्निल  

शब्दार्थ: क़ाबिल: योग्य, दलाल: मध्यस्थ; माश: उड़द; नियाज़: पूर्वजों/मृतकों के सम्मान में किया जाने वाला भोज, भंडारा; 
मलाल:खेद, दुःख ।



  

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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