जो जज़्बात ज़ेरे-बह् र आएंगे
नज़र में समंदर नज़र आएंगे
ज़रा और नज़दीक़ आ जाएं दिल
नक़ूशे-मुहब्बत उभर आएंगे
शबो-शब हमें याद करते रहें
ख़ुदा की क़सम, दिन संवर आएंगे
रखेंगे कहां तक हमें मुंतज़िर
कभी तो मियां राह पर आएंगे
इधर घर हमारा, उधर मैकदा
उधर जाएंगे या इधर आएंगे ?
बिठाया जिन्होंने तुझे तख़्त पर
वही क़ब्र तक छोड़ कर आएंगे
मुअज़्ज़िन ! न दीजो अज़ां ज़ोर से
मियांजी ज़मीं पर उतर आएंगे
हमें ख़ुल्द भी है गवारा अगर
ख़ुदा भी हमारे शह् र आएंगे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जज़्बात: मनोभाव; ज़ेरे-बह् र: छंद में, नियंत्रण में; नक़ूशे-मुहब्बत: प्रेम के चिह्न; शबो-शब: प्रति रात्रि; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत;
मियां: श्रीमान, प्रिय; मैकदा: मदिरालय; तख़्त: राजासन; क़ब्र: समाधि, श्मशान; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; मियांजी: आदरणीय व्यक्ति, यहां आशय ईश्वर; ख़ुल्द: स्वर्ग; गवारा; स्वीकार।
नज़र में समंदर नज़र आएंगे
ज़रा और नज़दीक़ आ जाएं दिल
नक़ूशे-मुहब्बत उभर आएंगे
शबो-शब हमें याद करते रहें
ख़ुदा की क़सम, दिन संवर आएंगे
रखेंगे कहां तक हमें मुंतज़िर
कभी तो मियां राह पर आएंगे
इधर घर हमारा, उधर मैकदा
उधर जाएंगे या इधर आएंगे ?
बिठाया जिन्होंने तुझे तख़्त पर
वही क़ब्र तक छोड़ कर आएंगे
मुअज़्ज़िन ! न दीजो अज़ां ज़ोर से
मियांजी ज़मीं पर उतर आएंगे
हमें ख़ुल्द भी है गवारा अगर
ख़ुदा भी हमारे शह् र आएंगे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जज़्बात: मनोभाव; ज़ेरे-बह् र: छंद में, नियंत्रण में; नक़ूशे-मुहब्बत: प्रेम के चिह्न; शबो-शब: प्रति रात्रि; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत;
मियां: श्रीमान, प्रिय; मैकदा: मदिरालय; तख़्त: राजासन; क़ब्र: समाधि, श्मशान; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; मियांजी: आदरणीय व्यक्ति, यहां आशय ईश्वर; ख़ुल्द: स्वर्ग; गवारा; स्वीकार।
वाह सर
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