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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

अहद के पैमाने

आज  खिलते  कँवल  नज़र  आए
कुछ  मसाइल  सहल  नज़र  आए

चश्मे-पुरनम  पनाह  दे  न  सके
ख़्वाब  यूं  बे-दख़ल  नज़र  आए

टूट    जाएं    अहद    के    पैमाने
हर  अदा  में  ग़ज़ल  नज़र  आए 

यूं  न  टूटे  किसी  ग़रीब  का  दिल
ज़िंदगी  सर  के  बल  नज़र  आए

मुंतज़िर   उम्र  भर    रहीं  आंखें
आप  वक़्ते-अज़ल  नज़र  आए 

तुख़्म   बो  आए  हैं    दुआओं  के
आसमां  पर  फ़सल  नज़र  आए

मिल  चुका  फ़ैसला  गदाई  का
रूह  कासा  बदल  नज़र  आए  !

                                                ( 2014 )

                                         -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: कँवल: कमल; मसाइल: प्रश्न, समस्याएं; सहल: सरल, सुलझते हुए; चश्मे-पुरनम: भीगे नयन; पनाह: शरण;  
बे-दख़ल: विस्थापित; अहद  के  पैमाने: संकल्पों के प्रतिमान; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; वक़्ते-अज़ल: मरते समय; तुख़्म: बीज;  
गदाई: सन्यास, भिक्षुक-वृत्ति;  कासा: भिक्षा-पात्र, यहां आशय शरीर। 
 


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