ग़ज़ल के शौक़ की ख़ातिर हम अपना घर जला दें क्या ?
बुज़ुर्गों की विरासत ख़ाक में यूं ही मिला दें क्या ?
हमें मालूम है, मसरूफ़ हो तुम इन दिनों, लेकिन
उमीदों को हमेशा के लिए दिल में सुला दें क्या ?
बग़ावत के लिए तुमको हमारे साथ रहना है
अकेले हम यज़ीदी तख़्त का पाया हिला दें क्या ?
चलो, माना कि ग़ालिब का बहुत-सा क़र्ज़ है हम पर
मगर उसके लिए अपने फ़राईज़ ही भुला दें क्या ?
बहुत अरमान है तुमको ख़ुदा से बात करने का
कहो तो आज ही उसको तुम्हारे घर बुला दें क्या ?
परख कर देख लो तुम भी दलीलें ख़ूब वाइज़ की
किराए पर तुम्हें हम ख़ुल्द में कमरा दिला दें क्या ?
हमें डर है, हमारे बाद तुम तन्हा न हो जाओ
बता कर मौत की तारीख़, हम तुमको रुला दें क्या ?
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शौक़: रुचि; ख़ातिर: हेतु; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; विरासत: उत्तराधिकार; ख़ाक: राख़, धूल; मसरूफ़: व्यस्त; बग़ावत: विद्रोह;
यज़ीद: हज़रत मुहम्मद स. अ. का समकालीन एक ईश्वर-द्रोही, अत्याचारी शासक, जिसने कर्बला में उनके उत्तराधिकारियों की हत्याएं कराईं; पाया: स्तंभ; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; फ़राईज़: कर्त्तव्य (बहु.); अरमान: उत्कंठा; दलीलें: वाद-प्रतिवाद; वाइज़: धर्मोपदेशक; ख़ुल्द: स्वर्ग; तन्हा: एकांतिक।
बुज़ुर्गों की विरासत ख़ाक में यूं ही मिला दें क्या ?
हमें मालूम है, मसरूफ़ हो तुम इन दिनों, लेकिन
उमीदों को हमेशा के लिए दिल में सुला दें क्या ?
बग़ावत के लिए तुमको हमारे साथ रहना है
अकेले हम यज़ीदी तख़्त का पाया हिला दें क्या ?
चलो, माना कि ग़ालिब का बहुत-सा क़र्ज़ है हम पर
मगर उसके लिए अपने फ़राईज़ ही भुला दें क्या ?
बहुत अरमान है तुमको ख़ुदा से बात करने का
कहो तो आज ही उसको तुम्हारे घर बुला दें क्या ?
परख कर देख लो तुम भी दलीलें ख़ूब वाइज़ की
किराए पर तुम्हें हम ख़ुल्द में कमरा दिला दें क्या ?
हमें डर है, हमारे बाद तुम तन्हा न हो जाओ
बता कर मौत की तारीख़, हम तुमको रुला दें क्या ?
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शौक़: रुचि; ख़ातिर: हेतु; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; विरासत: उत्तराधिकार; ख़ाक: राख़, धूल; मसरूफ़: व्यस्त; बग़ावत: विद्रोह;
यज़ीद: हज़रत मुहम्मद स. अ. का समकालीन एक ईश्वर-द्रोही, अत्याचारी शासक, जिसने कर्बला में उनके उत्तराधिकारियों की हत्याएं कराईं; पाया: स्तंभ; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; फ़राईज़: कर्त्तव्य (बहु.); अरमान: उत्कंठा; दलीलें: वाद-प्रतिवाद; वाइज़: धर्मोपदेशक; ख़ुल्द: स्वर्ग; तन्हा: एकांतिक।
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