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रविवार, 23 फ़रवरी 2014

अज़ान का जादू

उसका  चेहरा  दुआओं  जैसा  है
सुब्हे-नौ  की  शुआओं  जैसा  है

तिफ़्ले-मासूम  की  तबस्सुम-सा
दिल  तेरा  देवताओं  जैसा  है

उस  हसीं  की  अज़ान  का  जादू
दर्दे-दिल  की  दुआओं  जैसा  है

'आप'  क्या  कीजिए  सियासत  में
ये:  शहर  बेवफ़ाओं  जैसा  है

तू  ज़ुलैख़ा  तो  हम  भी  यूसुफ़  हैं
रंग  बेशक़  घटाओं  जैसा  है

भेस  जिसका  फ़क़ीर  जैसा  है
अज़्म  उसका  ख़ुदाओं  जैसा  है

बेवजह  अर्शे-नुहुम  तक  दौड़े
देस  उसका  ख़लाओं  जैसा  है !

                                             ( 2014 )

                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: सुब्हे-नौ: नई प्रात: ; शुआ: किरण; तिफ़्ले-मासूम: अबोध शिशु; तबस्सुम: मुस्कुराहट; ज़ुलैख़ा-यूसुफ़:मिथकीय चरित्र, 
संसार के सुंदरतम मनुष्य; भेस: वेश; फ़क़ीर: सन्यासी; अज़्म: महत्ता; अर्शे-नुहुम: नौवां आकाश, स्वर्ग-द्वार; ख़ला: निर्जन स्थान। 









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