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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

दीवानों का मजमा

हम  जो  जागे  रात-रात  भर,  हमको  कोई  काम  न  था
तुम  क्यूं  दीवाने  हो  बैठे,  तुमको  क्यूं  आराम  न  था  ?

आज  हमारे  घर  के  आगे,  दीवानों  का  मजमा  है
कल  तक  तेरे  यार  न  थे  तो  दिल  इतना  बदनाम  न  था

बढ़ते  ही  जाते  हैं  दिन  पर  दिन  हम  पर  हंसने  वाले
था  दीवानापन  हममें  पहले  भी ,  सुब्हो-शाम  न  था

लोग  हमारे  दर  पर  आ  कर  नाहक़  सज्दा  करते  हैं
अपने  तो  सारे  शजरे  में  कोई  रहीमो-राम  न  था

दुनिया  में  इससे  पहले  भी  तानाशाह  कई  आए
मज़हब  के  मुद्दे  पर  लेकिन  ऐसा  क़त्ले-आम  न  था

जब  हम  चौराहे  पर  ला  कर  सूली  पर  लटकाए  गए
सच  कहने  के  सिवा  हमारे  ऊपर  कुछ  इल्ज़ाम  न  था

कहते  हैं  कल  रात  फ़रिश्ते  हमको  लेने  आए  थे
लेकिन  उनके  पास  हमें  ले  जाने  को   पैग़ाम  न  था  !

                                                                              ( 2014 )

                                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मजमा: भीड़; दर: द्वार; नाहक़: व्यर्थ, अकारण; सज्दा: ढोक देना, सिर झुका कर प्रणाम करना;   शजरे में: वंशवृक्ष में; 
रहीमो-राम: रहीम या अल्लाह और राम; मज़हब: धर्म; मुद्दे: प्रश्न, विषय;   क़त्ले-आम: जन -संहार; इल्ज़ाम: आरोप;  फ़रिश्ते: मृत्युदूत; पैग़ाम: सन्देश। 

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