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शनिवार, 4 जनवरी 2014

...तो बड़ी बात है !

दिल  किसी  से  मिले  तो  बड़ी  बात  है
आशना  बन  सके  तो  बड़ी  बात  है

इश्क़  बे-ताब  हो  ये:  ज़रूरी  नहीं
रूह  में  आ  बसे  तो  बड़ी  बात  है

हुस्न  की  सादगी  देख  कर  आसमां
मरहबा  कह  उठे  तो  बड़ी  बात  है

आंख  से  अश्क  गिरना  तो  मामूल  है
क़तर:-ए-ख़ूं  गिरे  तो  बड़ी  बात  है

सुनते-सुनते  तेरे  दर्द  की  दास्तां
आसमां  रो  पड़े  तो  बड़ी  बात  है

कोह  पर  आ  गए  हैं  अज़ां  के  लिए
मोजज़ा  हो  रहे  तो  बड़ी  बात  है

तीरगी  में  तुझे  याद  करते  हुए
शम्'ए-दिल  जल  उठे  तो  बड़ी  बात  है !

                                                          ( 2014 )

                                                   -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: आशना: साथी; बे-ताब: विकल; मरहबा: धन्य, साधु-साधु;  अश्क: अश्रु; मामूल: सामान्य बात, सहजता; 
क़तर:-ए-ख़ूं: रक्त की बूंद; दास्तां: आख्यान, कथा; आसमां: आकाश, ईश्वर; कोह: पर्वत; अज़ां: ईश्वर के नाम की पुकार; 
मोजज़ा: चमत्कार; तीरगी: अंधकार; शम्'ए-दिल: मन का दीप। 

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